बुधवार, 16 अगस्त 2017

तुम तपिश दिल की बढ़ने तो दो, बर्फ पिघलेगी ही एक दिन.


ग़ज़ल
तुम तपिश दिल की बढ़ने तो दो, बर्फ पिघलेगी ही एक दिन.
तोड़कर सारी जंज़ीरें वो, घर से निकलेगी ही एक दिन.

शौक़ जलने का परवाने को, होगया आजकल इस कदर,
लाख कोशिश करे कोई भी, शम्आ मचलेगी ही एक दिन.

अश्क बहते नहीं उम्र भर, ग़म न कर अय मेरे हमसफ़र.
बात बिगड़ी है जो आजकल, वो तो सँभलेगी ही एक दिन.

आँसुओं को सँभालो ज़रा, मोतियों को बिखरने न दो,
उखड़ी उखड़ी है तबियत जो ये, a-08-2017०१७,  वो तो बहलेगी ही एक दिन.

तू हवाओं से खुद को बचा, मान ले बात ओ दिलरुबा,
आग दिल में लगी देखना,वो तो फैलेगी ही एक दिन.

लोग समझें इसे दिल्लगी, जानलेवा है ये शायरी,
बाद मरने के मेरे इसे, दुनियां समझेगी ही एक दिन.



डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता,16-08-2017

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