शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

हम ग़ज़ल कह रहे हैं तुम्हारे लिये.

ग़ज़ल

हम ग़ज़ल कह रहे हैं तुम्हारे लिये.
मुस्कराओ ज़रा तुम हमारे लिये.

एक हम थे जो तूफ़ान से भिड़ गये,
लोग बैठे रहे सब किनारे लिये.

बात क्या फिर कोई हम खरी कह गये,
लोग फिरते हैं सब क्यों दुधारे लिये.

हों मुबारक तुम्हें फूल की वादियाँ,
क्या करेंगे इसे दिल के मारे लिये.

ये अलग बात है आज तन्हा हैं हम,
साथ फिरते थे हम चांद तारे लिये.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.15-12-2017




3 टिप्‍पणियां:

  1. आदरनीय सुभाष जी -- बहुत ही सुंदर एहसासों से भरी गजल है | सभी शेर बहुत उम्दा हैं | सादर शुभकामना |

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