रविवार, 31 दिसंबर 2017

चेहरे की चमक, होटों की मुस्कान ले गया.

ग़ज़ल
चेहरे की चमक, होटों की मुस्कान ले गया.
जीने के मेरे सारे ,वो अरमान ले गया .

सिगरिट, शराब, अश्क, तन्हाई, व बेकली,
किन रास्तों पे मेरा, महरबान ले गया.

अब लोग पूछते हैं, बताओ तो कौन था ?
जो जिस्म छोड़कर, के मेरी जान ले गया.

अब मेज़बां के पास, तो कुछ भी बचा नहीं,
दिल की तमाम हसरतें, महमान ले गया.

हम गुमशुदा हैं ख़ुद से,ही ख़ुद की तलाश है,
अपने वो साथ मेरी भी, पहिचान ले गया.

उसने तो साथ छोड़ दिया, बीच धार में,
साहिल तलक मुझे, मेरा तूफान ले गया.

अँधों के शहर आइना था, बेचना गुनाह,
ये शौक ही तो हम को, बियाबान ले गया.

क्या-क्या हुए हैं हादसे, हम से न पूछिए,
घर को ही लूट घर का,वो दरबान ले गया.
डॉ. सुभाष भदौरिया

डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.31-12-2017.


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