ग़ज़ल
मिल जायें अगर जो राहों में झट से वो किनारा करते हैं.
तस्वीर हमारी जो चुपके चुपके से निहारा करते हैं.
ठंडी ठंडी रातों की चुभन उस पर ये ग़ज़ब की तन्हाई,
यादों की रजाई पर तेरी, मुश्किल से गुज़ारा करते है.
ये बात कहां वो समझेंगे, ये बात कहां वो मानेगे,
हम रात को अक्सर उठ उठ कर उनको ही पुकारा करते हैं,
दिल उनका रखने की ख़ातिर सह लेते हैं हर एक सितम,
जीती हुई बाजी को उनसे हँस हँस कर हारा करते हैं.
आबाद रहे जिसने की है इस लख़्ते जिगर पे कारीगरी
उस कारीगरी की हम लोगों अब नज़र उतारा करते हैं.
हम नाम ना लें, हम ना सोचें, हम खायें कसम चाहे लाखों,
यादों की गलियों में उसकी हम खुद को संवारा करते है.
अल्फ़ाज़ हमारे गर तुम तक, पहुँचें तो हमारी सुध लेना,
अब दोस्त तो क्या दुश्मन भी मेरी हालत पे विचारा करते हैं.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता. 26-12-2017
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