मंगलवार, 20 मार्च 2018

अपनी नज़रों से यूं ना गिरा दीजिये.

ग़ज़ल
 अपनी नज़रों से यूं ना गिरा दीजिये.
दूसरी जी में आये सज़ा दीजिये.

छोड़िये, छोड़िये, सारे शिकवे-गिले,
हो सके तो ज़रा मुस्करा दीजिये.

पास हैं आज तो आप उखड़े हुए,
दूर जायें तो फिर ना सदा दीजिए.


  थम ना जायें कहीं आशिकी में कदम,
थोड़ा थोड़ा सही हौसला दीजिये.

           आप मुंसिफ़ सही हम गुनहगार हैं
क्या ख़ता है हमारी बता दीजिये.

गर जो हक़दार हैं तो लगाओ गले,
और जो दीवार हैं तो गिरा दीजिये.

डॉ. सुभाष भदौरिया ता.20-03-2018

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