ये न पूछो कि
अब क्या हुआ है.
दर्द सीने
में फिर से उठा है.
कोई काँटा हो
तो हम निकालें,
फूल अपने
कलेजे चुभा है.
हर जगह ये
तुझे ढूंढ़ता है,
मेरा दिल भी
हुआ बावरा है.
बिन पिये ही
बहकनें लगा मैं,
तेरी यादों
का कैसा नशा है ?
साथ में तू
रहे मेरे हरदम,
मैंने माना
बहुत फासला है.
ज़ख़्म मेरे
महकने लगे फिर,
छू के आयी तुझे क्या हवा है.
जिसकी मर्जी
हो वो उसको पूजे.
मेरा महबूब
ही बस ख़ुदा है.
डॉ. सुभाष
भदौरिया गुजरात ता.29-03-2018
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