शुक्रवार, 30 मार्च 2018

बेवफ़ाई के किस्से सुनाऊँ किसे.



ग़ज़ल

बेवफ़ाई के किस्से सुनाऊँ किसे.
बात दिल की है अपनी बताऊँ किसे.

कौन दुनियां में अपना तलबगार है,
फोन किसको करूँ मैं बुलाऊँ किसे.

ग़म जो दो चार हों तो गिनाऊँ तुम्हें,
सैकड़ों ग़म है अपने गिनाऊँ किसे.

रूठने और मनाने के मौसम गये,
किससे रूठूं मैं अब, मैं मनाऊँ किसे.

शाख पर मेरी फल आ गये इन दिनों,
अब तो झुकता हूँ ख़ुद मैं झुकाऊँ किसे.

मुस्कराने की कोई वजह तो मिले,
बेवजह फिर कहो मुस्कराऊँ किसे.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.30-03-2018



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