ग़ज़ल
आँख सूरज लगा है दिखाने.
छाँव की फिर लगी याद आने.
हम तलबगार तेरे अभी भी,
तू चली आ किसी भी बहाने.
जुस्तजू एक तेरी ही थी बस,
हमने चाहे कहाँ थे ख़जाने .
जी रहे किस तरह ये समझ लो,
सांस के चल रहे कारखाने.
प्यास क्या चीज है पूछिये मत,
प्यास को सिर्फ प्यासा ही जाने.
हम को रोने की आदत पड़ी अब,
मुस्कराये हुए हैं जमाने .
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.31-03-2018
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