tag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post6988033227710674229..comments2023-09-15T20:47:12.882+05:30Comments on डॉ.सुभाष भदौरिया धानपुर जि.दाहौद गुजरात: अगले हमलों का इंतज़ार करें.subhash Bhadauriahttp://www.blogger.com/profile/12199661570434500585noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-22970753730941742912009-03-07T11:23:00.000+05:302009-03-07T11:23:00.000+05:30अर्शजी ग़ज़ल मेरे लिए लोगों,लुगाइयों,को रिझाने का ...अर्शजी ग़ज़ल मेरे लिए लोगों,लुगाइयों,को रिझाने का ज़रिया नहीं हैं.मैं उन तमाम लोगों की ज़बां में उनकी बात करता हूँ जो मुसल्सल सह रहे हैं जो दानिशमंद हैं अपने दड़बे में बैठे कुकड़ूं कर रहे हैं और भाषा की रंगीनियों पर मुग्ध हैं.<BR/>ग़ज़ल मेरे लिए हथियार है मैं इससे अँधेरों को हलाक करता हूँ.<BR/>मतले का शब्द चूतिए जिसे आप अनुचित बता रहे हैं वास्तव में कथ्य को वही धारदार बना रहा है उसकी जगह दोगले कह कर आपकी नज़र में जो दोष है उससे बचा जा सकता था.<BR/>पर ये प्रयोग जानबूझकर है.<BR/>भाषा का अध्यापक हूं शब्दों की लीला,अंलकारों का वज़न लब ले वाकिफ़ हूँ और एक बात उर्दी हिन्दी गुजराती भाषा की ग़ज़लों पर 1990 में काम किया था. ख़ास कर अरूज़ को एक फ़ारसी के विद्वान से सीखा है.<BR/>मेरी राह बग़ावत की है लहूलुहान मंजर हो हर कदम पर खतरा और मुल्क निगेहबान गाल बजाकर काम चला रहे हों तब ऐसे शब्दों से ही उनकी नवाज़िश होनी चाहिए.<BR/>एक बात अर्श अब गुरुओं के चरण छूने का जमाना नहीं उनकी माला जपने से उनकी परवाह करके तुम अपनी कलम की कुव्वत खो बैठोगे.<BR/>हमारा तो मशवरा है गुरुओं का लात मारो और क्रांतिकारी हो जाओ.<BR/>कोई छात्र जब हमारे भूल कर पांव छूता है तो हम अपने आप को तलाशना शुरू करते हैं हम इतने कमीने कब से हो गये कि शिष्य हमारे पांव छुएं.<BR/>हमें पता है इस राह में हम अकेले हैं पाखंडियों से भारी चिड़. सो भाषा के गाल चाटना छोड़ो और उसे धारदार बनाओ ये हाथ में गुलाब देने का मौसम नहीं कमबख्तों ने देश की अस्मिता गिरवी रख दी है और तुम उचित अनुचित में उलझे हो धिक्कार है.subhash Bhadauriahttps://www.blogger.com/profile/12199661570434500585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-45250683991788798292009-03-06T22:23:00.000+05:302009-03-06T22:23:00.000+05:30भदौरिया साहब नमस्कार,आपकी लेखनी को सलाम करता हूँ ब...भदौरिया साहब नमस्कार,<BR/>आपकी लेखनी को सलाम करता हूँ बहोत ही मुकम्मल शाईर हैं आप बहोत खूब ग़ज़ल कहते है .... मगर एक शंका है अन्यथा ना ले .. आपने मतले में एक अनुचित शब्द का प्रयोग किया है क्या वो करना सही है किसी भी जिम्मेवार गज़ल्गोई को ... सिखने की प्रक्रिया में हूँ इसलिए पूछ बैठा आपसे..मेरी शंका का समाधान करें,,,<BR/><BR/>अर्श"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-15243237732697216422009-02-22T11:52:00.000+05:302009-02-22T11:52:00.000+05:30इंडियन साहब आपके ब्लाग पर देखा तो पता चला ग़ज़ब की...इंडियन साहब आपके ब्लाग पर देखा तो पता चला ग़ज़ब की कलम में धार रखते हैं आप.हम अब बारबार नहीं आ सकते गुजरात की राष्ट्रवादी सरकार ने एक एन.सी.सी. अफसर को ऐसी जगह की नई खुली शहरा गांव की कॉलेज मे रक्खा है जहां एन.सी.सी न होने से एक साल में कमीशन रद्द हो जायेगा.कंप्यूटर नेट इस गांव मे दूर की बातें हैं.आतंकवादी गोलियों से जिस्मों को मारते हैं. गुजरात शिक्षा विभाग के आतंकवादी सोच को मार रहे हैं वे तालिबानों से ज्यादा ख़तरनाक हैं.जैसे नागनाथ वैसे सांपनाथ सभी एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं यार.किस का रोना रोयें चोर चोर मौसेरे भाईsubhash Bhadauriahttps://www.blogger.com/profile/12199661570434500585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-27036259791622432992009-02-22T09:52:00.000+05:302009-02-22T09:52:00.000+05:30सुभाषजी अपने ब्लॉग "कांग्रेस एक धोखा" (जिसपर अब मै...सुभाषजी अपने ब्लॉग "कांग्रेस एक धोखा" (जिसपर अब मैं नही लिखता ) पर एक बार आपकी टिप्पणी मिली थी, उसके बाद आज आपको फ़िर पढने का मौका मिला, बहुत सुंदर रचना है। धन्यवाद, बार बार आयेंगे जल्दी जल्दी ( मैं स्वार्थी की तरह लिख रहा हूँ ) तो हम जैसे पाठकों का भला ही करेंगे।इंडियनhttps://www.blogger.com/profile/16782550787193451197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-88168856965332012982009-02-22T08:41:00.000+05:302009-02-22T08:41:00.000+05:30अशोकजी जहां पर नई कोलेज खुली है वह हवामें है अभी 1...अशोकजी जहां पर नई कोलेज खुली है वह हवामें है अभी 1 वर्ष से जमीन ही नहीं मिली.हमसे पहले के इंचार्ज प्रिंसीपल भी हवा मे रहते थे.हम गांव में ही रहते है छुट्टियों में अहमदाबाद आना होता है तभी तीर संधान करने का अवसर मिलता है.आप जैसे कद्रदानों की हौसला अफ़ज़ाई ही ज़िन्दा रक्खे हुए है. कमबख्तों ने साज़िश कर सब छीन लिया है घर बार पर खुद्दारी कम नहीं हुई.आपकी नवाज़िश के लिए शुक्रगुज़ार हूँ साहब.subhash Bhadauriahttps://www.blogger.com/profile/12199661570434500585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-60316287060569168692009-02-21T23:14:00.000+05:302009-02-21T23:14:00.000+05:30काफी दिन बाद इस बार अवतरण हुआ। इंतजार था। अच्छी गज...काफी दिन बाद इस बार अवतरण हुआ। इंतजार था। अच्छी गजल। बधाईbijnior districthttps://www.blogger.com/profile/02245457778160306799noreply@blogger.com