tag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post8096629563188231043..comments2023-09-15T20:47:12.882+05:30Comments on डॉ.सुभाष भदौरिया धानपुर जि.दाहौद गुजरात: देखा है आँख ने ये तमाशा भी दोस्तों.subhash Bhadauriahttp://www.blogger.com/profile/12199661570434500585noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-42192670140806207802008-10-27T13:07:00.000+05:302008-10-27T13:07:00.000+05:30बहुत ख़ूब...बहुत ख़ूब...फ़िरदौस ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/09716330130297518352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-46547003280637617452008-10-27T11:27:00.000+05:302008-10-27T11:27:00.000+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-18236032435687434282008-10-27T10:25:00.000+05:302008-10-27T10:25:00.000+05:30सतीशजी जिस शब्द पर आप ने बच्चों को न पढाने का वास्...सतीशजी जिस शब्द पर आप ने बच्चों को न पढाने का वास्ता दिया उसे तब्दील कर दिया है अब आप बच्चों की अम्मा चाची सबको पढ़ा दीजिए. <BR/>वैसे आपको सच कहें आप जिस शब्द को लेकर अभिधागत अर्थ पर ज़ोर दे रहे थे उसकी व्यंजना खास कर मुहावरे के रूप में आम लोग इस्तेमाल करते हैं.अभिजात वर्ग की तकलीफ मैं समझ सकता हूँ मेरी ग़जलों में आम वर्ग की पीड़ा है तो भाषा भी वही होगी.<BR/>ख़ैर जिस मुहब्बत से आप ने ग़ुज़ारिश की मान गये सरकार. अब इतने तो गुस्ताख़ नहीं है जितना लोग समझते हैं.subhash Bhadauriahttps://www.blogger.com/profile/12199661570434500585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-47701207829072021102008-10-27T09:47:00.000+05:302008-10-27T09:47:00.000+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-37362543570987838972008-10-26T18:51:00.000+05:302008-10-26T18:51:00.000+05:30दिनेशजी पिछली पोस्टो में वर्णित भाषा पर आप कुछ न ब...दिनेशजी पिछली पोस्टो में वर्णित भाषा पर आप कुछ न बोलें हो सके तो उन पर बात कीजिये.<BR/>ग़ज़ल हमारे लिए लिए दर्द का इज़हार ही नहीं हथियार भी है दानिशमंद समझें तो बेहतर है.<BR/>जब चारों तरफ सब कुछ असहज हो तो रचनाकार से सहजता बनाये रखे ये कैसे हो सकता है.इन ढकोसोलों से हम कोसों दूर हैं. हमने कई बार कहा है अल्फ़ाज़ की हमारे पास कमी नहीं.जिन किरदार की हम बात करते हैं उनका दोगला पन अब छुपा नहीं.<BR/>पिछली कई पोस्टों में हमने मधुरम मधुरम भाषा का प्रयोग किया है आप देखें.<BR/>मीठे के साथ तीखे का भी आनंद लेना सीखिये साहब और खास उम्र में तो मीठे से परहेज करना चाहिए आप उम्र रशीदा है वकील साहब कहीं अधिक मीठे की लालसा आपको डायाबिटीज़ न कर दे.<BR/>दीपावली की आपको भी शुभकामनायें.इक शेर याद आ गया-<BR/>वो गाली भी देता है तो लगता है दुआ देता है.<BR/>थोड़ा कबीर को पढ़िये श्रीमान.आमीन.subhash Bhadauriahttps://www.blogger.com/profile/12199661570434500585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5530967613912148888.post-19556380318335446832008-10-26T18:23:00.000+05:302008-10-26T18:23:00.000+05:30दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ। आप के विचार अच्छे ह...दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ। आप के विचार अच्छे हैं। पर भाषा असहज लगी।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com