ग़ज़ल
रातों में जो तन्हा हम, सड़कों पे निकलते हैं.
यादों के तेरे जुगनूँ, फिर साथ में चलते हैं.
होटों का वो शीरींपन, आँखों के वो पैमाने.
हम तेरी मुहब्बत में, गिर गिर के सँभलते हैं.
छूकर के हवायें क्या,आयीं हो उन्हें बोलो ?
अरमान मेरे दिल के, जाने क्यों मचलते हैं.
इक बार चले आओ,देने को तसल्ली अब,
दीवाने कहां ? तेरे,फोटो से बहलते हैं.
हमने तो तुम्हें चाहा, हमने तो तुम्हें पूजा,
वे लोग अलग होंगे जो मीत बदलते हैं.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.01-05-2011
गज़ब गज़ब गज़ब कर दिया………बहुत ही शानदार शेरो से सजी लाजवाब गज़ल्।
जवाब देंहटाएंसुभाष भाई ऐसे कोमल अशआर कहने वाले शायर अब कहाँ है...पुराने उस्तादों की याद ताज़ा हो गयी...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...दाद कबूल करें.
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
१-वंदनाजी आपकी नवाजिश हमारी ग़ज़लों को और भी उरूज़ बख्शेगी.
जवाब देंहटाएंइस अंजमन में आपको आना है बार बार,
दीवारो-दर को गौर से पहचान लीजिए.
२-नीरजजी आपकी मुहब्बत के क्या कहने
तुम से मिलने को दिल करता है .
आपके आने से हमारा ब्लाग महक उठता है आप हर रंग में हमें झेल लेते हैं.शुक्रिया जनाब.
३- संगीताजी आपने चर्चामंच पर हमारी ग़ज़ल का लिंक देकर जो हमें इज़्ज़त दी है उसके लिए आभारी हूँ आपका. मैने मंच पर भी अपनी प्रतिक्रया दर्ज़ की है.
खूबसूरत गजल ...सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल ..........हर शेर बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्रीसुभाषजी,
जवाब देंहटाएंवे लोग अलग होंगे जो मीत बदलते हैं.
बहुत सुंदर रचना।
`तु नहीं ओर सही` सोच पर करारी चोट..!!
शुक्रिया।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
रातों में जो तन्हा हम, सड़कों पे निकलते हैं.
जवाब देंहटाएंयादों के तेरे जुगनूँ, फिर साथ में चलते हैं....
बहुत खूब! क्या कोमल अहसास..बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
आकांक्षाजी, सुरेन्द्रसिंहजी,मकरन्द दवेजी,कैलाश शर्माजी आप सब का ब्लाग पर हार्दिक स्वागत है.आप सभी के अमूल्य प्रतिभावों के लिए कृतज्ञ हूँ.
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