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ग़ज़ल
जैसे चाहूँ उसे नचाती हूँ.
बहुत गहरे में, मैं डुबाती हूँ.
ताज़ दिल्ली का बचाने के लिए,
रात में लाठियां चलाती हूँ.
लोग भूखे मरें या गोली से,
देश की धज्जियाँ उड़ाती हूँ.
अफ़्ज़लों और कसावों को अपने,
घर में दामाद मैं बनाती हूँ.
मुंबई जल गयी तो क्या ग़म है,
हादसे सारे भूल जाती हूँ.
आईना जो भी दिखाये मुझको,
अपने कुत्तों से फिर कटाती हूँ.
ठोकरों में हैं सर सभी के मेरे,
आग पानी में मैं लगाती हूँ.
रंग भगवा जो देखूँ सपनें में.
फिर तो सोते से जाग जाती हूँ.
आँधियां तेज हो चली अब तो,
मुल्क को अब कहाँ सुहाती हूँ ?
हमने फेश बुक पेज पर उपरोक्त फोटो देखी और ये ग़जल हो गयी. दिल्ली में रात के समय जिस तरह रामदेव बाबा और उनके अनुयायी देश प्रेमी माँ बहिनों वृद्धो, साधु सन्यासियों पर लाठियों और टीयर गैस से हमला कर निष्कासित किया गया वह बर्बरता पूर्ण कांड भुलाने जैसा नहीं है और उसके बाद देश के हुक्मरानों जैसे उसे जाइज़ ठहराया उसके बाद लोगों रचनाकारों का गुस्सा अपने अपने ढंग से व्यक्त हो रहा है हम भी उनमें से एक हैं.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.12-6-2011
बहुत सटीक टिप्पणी आज की व्यवस्था पर...आभार
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
सुभाष जी, कार्टून बहुत ही सशक्त है। लेकिन दुख भी बहुत होता है देश की इस अवस्था को देखकर। आज देश की ऐसी स्थिति हो गयी है कि देश के प्रधानमंत्री का ऐसा कार्टून बने? लेकिन लोग अपने गुस्से को कब तक दबाकर रख पाएंगे।
जवाब देंहटाएंसुभाष भदौरिया जी बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंExcellent ....Outstanding..!
बेहद शानदार और करारी चोट करता व्यंग्य ……………आज ऐसे व्यंग्यो की बहुत जरूरत है।
जवाब देंहटाएंआज की व्यवस्था पर बहुत सटीक टिप्पणी....धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सटीक चित्रण ... दोनो माध्यम कमाल के हैं ... अपनी बात मजबूती से कह रहे हैं ...
जवाब देंहटाएं1-श्री कैलाश शर्माजी आज का व्यवस्था पर टिप्पणी पसन्द आयी आपका आभारी हूँ श्रीमान.
जवाब देंहटाएं2-संगीताजी आपने चर्चामंच पर हमारी ग़ज़ल की चर्चा के साथ हमारी दिलकश तश्वीर लगा कई कद्रदानों को हमारे ब्लाग पर भेज दिया शुक्रिया.
ब्लाग और हमारा दिल दोनों भूतो का डेरा है. लोग आते तो हैं ज़्यादा दिनों कहां ठहरते हैं.
3-श्रीमती गुप्ता कार्टून किसी और फ़नकार का है हमने तो शब्दों से शिनाख्त की है दुख के साथ सत्य आप भी क़ुबूल करती हैं धन्यवाद.
4- डॉ.मिस शरद सिंह आपका ब्लाग देखा क्या कमाल का ब्लाग हैं
Excellent ....Outstanding..! अरे हममें Outstanding होती तो ज़लावतन दूर दराज़ के किसी गाँव में सज़ा याफ्ता मुज़रिम की तरह ग़ज़लें लिखकर ग़म क्यों दूर करते.
बहरहाल मैं अपने ब्लाग पर आपका इस्तबाल करता हूँ सियासी ग़ज़ल से फिर एक बार रूहानी ग़ज़ल की ओर आपका ब्लाग मुझे ले जायेगा.
आपके ब्लाग पर खज़ुराहो की मूर्तियों का मंजर तो जान लेवा हैं.
दिनकर की महाकृति उर्वशी की याद दिला दी आपने.कविता के साथ एक नज़र भी है आपके पास उसका भी आपके ब्लाग पर जाकर पता चला.आते जाते रहिए.
5- वंदनाजी मैं ग़ज़लें बहुत डूब कर कहता हूँ किनारो पे तमाशा देखना मेरी फितरत कहां इसके जोख़म हैं मैं उठा रहा हूँ.
6- महेश्वरीजी आपको रचना पसन्द आयी धन्यवाद आपकी भी.
7- दिगम्बर नासवाजी आपने दोनों माध्यमों को सराहा वास्तव में इस कृति को बनाने वाले रचनाकार का मैं दिल से आभारी हूँ जिसने मुझसे ये ग़ज़ल लिखवाली.
घर में दामाद "में" बनाती हूँ.
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जिसके भी ह्रदय में देश की दुर्दशा के लिए क्षोभ होगा, वह इस रचना की प्रशंसा किये बिना नहीं रह पायेगा...
बहुत ही सटीक लिखा है आपने....