उपरोक्त तस्वीरें ता.26-7-08 शाम 6-30 को होने वाले मेरे शहर अहमदाबाद के बोम्ब विस्फोटों में मरने वाले आम गरीब लोगों की है.जो फल की लारी चलाकर बमुश्किल गुज़र करते हैं.बुज़दिल दहशतगर्दों ने उन्हें सोफ्ट टारगेट मानकर हलाक किया है. उनकी इस कायराना हरकत में
शहर और देश के गद्दार भी शामिल हैं. ये ग़ज़ल उन्हीं हरामियों के नाम है-ग़ज़ल
घर में रहकर जो ज़ुल्म ढाओगे.
सालो ज़िन्दा जलाये जाओगे.
सब्र का बांध जो टूटा सबका,
बहते तिनके से नज़र आओगे.
खा के थाली में छेद करते हो,
तुम निवाले को तरस जाओगे.
भाग कर जाओगे कहां कुत्तो ?
सोते सिंहों को गर जगाओगे.
कौन देगा पनाह फिर तुमको,
तुम गरीबों को गर सताओगे.
पूछ में आग फिर लगाई है
पानी-पानी सभी चिल्लाओगे.
डॉ.सुभाष भदौरिया,.ता.27-07-08 समय-07.45PM
बढ़िया . मगर चित्र देखकर दुःख होता है .यदि पकड़ में आ जाए तो उन्हें खदेड़ खदेड़ कर मार डालना चाहिए .
जवाब देंहटाएंये ही सोच कुछ मेरी भी है...हो सके तो पढ़ना..अभी पोस्ट की है और यदि जवाब दे सको तो जवाब भी देना उनमें उठे सवालों का।
जवाब देंहटाएंसशक्त रचना.
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