रविवार, 6 जुलाई 2008

बुश से करने चले सगाई वे.

ग़ज़ल
देश की दे रहे दुहाई वे.
बांट खायेंगे फिर मलाई वे.

लोटे बिन पेंदी के लुढ़क करके,
दे रहे देखो अब सफाई वे.

गांड फाड़े है सब की मँहगाई,
बुश से करने चले सगाई वे.

चोर-चोरों में मौसिया रिश्ता,
हैं तो आपस में भाई भाई वे.

उनको अपने भले की चिन्ता है,
मुल्क की क्या करे भलाई वे.

भाँड निकले हैं फिर तमाशे को,
कर रहे देखो जगहँसाई वे .

हमने जिन पे था एतबार किया,
आज करते हैं बेवफ़ाई वे.

रोज़ ताज़ा वो ज़ख्म देते हैं,
हँस के बांटे हैं फिर दवाई वे.

डॉ.सुभाष भदौरिया,ता.06-07-08 समय.8.00PM.








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