शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

इश्क़ कुतियों से लड़ाना सीखिये.

ग़ज़लइश्क़ कुतियों से लड़ाना सीखिये.
पीछे-पीछे उनके जाना सीखिये.

क्या ग़ज़ब लिखती हो कविता जानेमन,
मछलियाँ ऐसे फँसाना सीखिये.

हम अछूतों से रखो दूरी मगर,
पाँव बुलबुल के दबाना सीखिये.

दिल भी मिल जायेंगे इक दिन देखना,
हाथ पहले तो मिलाना सीखिये.

वज़्न से ग़ाफ़िल न होना तुम कभी,
ग़ज़ल पहले गुनगुनाना सीखिये.

नक़्ल में भी अक़्ल लाज़िम है जनाब,
यूँ ही मत भोंपू बजाना सीखिये.

चोंचले कितने दिनों चल पायेंगे.
तल्ख़ियों से दिल लगाना सीखिये.

शायरी का इल्म भी आजायेगा,
पहले अपने दर पे आना सीखिये.
इस ग़ज़ल के प्रेरणा स्त्रोत ब्लॉग जगत के महानुभावों के हम ऋणी हैं.
ता.31-10-08 समय-08-35PM






6 टिप्‍पणियां:

  1. sahi hai re bheedu... dunia hi kutton ki hai

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  2. बस दो ही आदमी बाकी कहां गये
    आदमी हैं कहाँ साहब वे कुत्तों में तब्दील हो गये.
    कहीं सूँघ रहें होगे कमबख्त.
    पर कुत्तों का तो एक निश्चित मौसम होता है.
    इंसानी कुत्ते बारह महीने जीभ लपलपाते घूमते हैं तस्वीर की तरह.
    कुत्ता नंबर 1-हें हें तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करूँ
    कुत्ती नंबह 1-साला सबको यूँ ही पटाता है परे हट लुच्चे.
    आजकल इंसानी कुत्तों की नस्ल बढ़ रही हैं. हा--हा हा- कैसी रही कालिया. हा- हा--हा.

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  3. वज़्न से ग़ाफ़िल न होना तुम कभी,
    ग़ज़ल पहले गुनगुनाना सीखिये.

    अच्छी बात कही सुभाष जी...
    शुभकामनाएं

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  4. chalo der se sahee kahaa bhaiyaaji
    wafadare ke baad ishq inase hee to seekhane baaqi hai
    "VAISE MAZA AA GAYA "

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  5. अजीतजी गिरीशजी के आने से दो के चार आदमी हुए.
    बाकी कहाँ हैं रे कालिया इंसानी कुत्तों को सांप सूँघ गया क्या ?
    जो इंसान हों वे आकर अपना तअरूफ करायें.

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