बुधवार, 7 मई 2014

कब तलक तेरा रस्ता तकें तू बता.




ग़ज़ल
 कब तलक तेरा रस्ता तकें तू बता.
आ भी जा, आ भी जा, आ भी जा, आ भी जा.

बदरियां तो समन्दर  पे बरसा करीं,
खेत मेरा मगर अब भी सूखा पड़ा.

गुम हुआ जब से फिर वो मिला ही नहीं,
हर जगह उसको ढूँढ़े है दिल बावरा.

ज़िन्दगी की सुलगती हुई धूप में,
तेरी यादों का ही एक है आसरा.

आँधियाँ ग़म की चलती रहीं उम्र भर,
जूझता मैं रहा उनसे तन्हा खड़ा.

दिल पे छुरियां चलाते रहे लोग सब,
मैं ग़ज़ल को मगर गुनगुनाता रहा.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात. ता.07-05-2014








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