गुरुवार, 15 मार्च 2018

मुझको उलझाके वो भी उलझेगा.


ग़ज़ल

मामला इस तरह ना सुलझेगा.
मुझको उलझाके वो भी उलझेगा.

नाज़ हमने उठाये हैं तेरे,
हम न होंगे तो कौन पूछेगा.

मेरे ऐबों को देखने वाला,
आइना वो कभी न देखेगा.

शीश-ए- दिल की अब तो ख़ैर नहीं,
उसके हाथों से गिर के टूटेगा.

आदमी मैं कोई बुरा तो नहीं,
वो अकेले में ये भी सोचेगा.

अब मुसाफ़िर पे कुछ बचा ही नहीं,
राहबर और कितना लूटेगा.


दो दो नावों पे पाँव रखता है,
देखना एक दिन वो डूबेगा.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.15-03-2018




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