ग़ज़ल
उनको सहने की ये आदत क्यों है ?
बुज़दिली उनकी शराफ़त क्यों है.
हाथ पर हाथ क्यों धरे बैठे ?
इतनी कुर्षी से मुहब्बत क्यों है ?
सांस की जगह रोकते पानी ,
ये मदारी सी करामत क्यों है. ?
जान हमतो वतन पे दे बैठे,
अपनी लाशों पे सियासत क्यों है ?
जो भी करना है आर-पार करो,
अपने दुश्मन पे रियायत क्यों है ?
घाटी जलती है
अगर धू- धू के,
फिर करांची ये
सलामत क्यों है ?
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.२२-०२-२०१९
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