ग़ज़ल
अब कितना रूलाओगे बोलो तो ज़रा हमको.
फिर छोड़ के जाओगे बोलो तो ज़रा हमको.
सब लोग जुदाई का पूछे हैं सबब हमसे,
दिन ये भी दिखाओगे बोलो तो ज़रा हमको.
मुश्किल है बहुत मुश्किल, पत्थर का
पिघलना भी,
कब होश में आओगे बोलो तो ज़रा हमको.
फुरसत ही नहीं मिलती, मिलने की तुम्हें
हमसे,
फिर हमको बनाओगे, बोलो तो ज़रा हमको.
सूरत ये हमारी अब पहिचानी नहीं जाती,
आईना दिखाओगे बोलो तो ज़रा हमको.
हो जायें अगर रुख़सत, दुनियां से कभी हम
जो,
फिर हमको मनाओगे बोलो तो ज़रा हमको.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.30/09/2018
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