ग़ज़ल
या तो आ जाओ, या फिर हमको बुलाकर देखो.
आशिक़ी चीज है क्या दिल को लगाकर देखो.
दूर ही दूर से मौज़ो को नहीं समझोगे,
लुत्फ़ लेना है समंदर में नहाकर के
देखो.
दूरियां शौक़ से रक्खो है तुम्हारी
मर्जी,
और भड़के नहीं कहीं आग दबाकर देखो.
और भी रूह में उतरेगी ये खु़श्बू मेरी,
तुम अगर चाहो तो ख़त मेरे जलाकर देखो.
कांच का जान हमें धूल में फेका सबने,
'
हो अगर पारखी तुम हमको उठाकर देखो.
सारी रंगीनियां रिश्तों की ये उड़
जायेंगी,
वक्त की धूप में थोड़ा सा सुखाकर देखो.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता. 29-09-2018
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