ग़ज़ल
दुश्मन के घर में घुस कर के नाम कर दिया
है.
सीने ने आज छप्पन के काम कर दिया है.
टेलर है सिर्फ ये तो, पिक्चर भी देख
लेना,
गुस्ताख़ियों कि उसको पैग़ाम कर दिया
है.
ख़ामोशियों को अपनी वो मान बैठा
बुज़दिल,
ज़िन्दादिली हमारी को आम कर दिया है.
हम चाहते थे रहना मिलजुल के मगर उसने,
चाहत को पर हमारी बदनाम कर दिया है.
अब ताज़ तख़्त क्या ये,सर भी वतन को
हाज़िर,
सासों को दुश्मनों की अब जाम कर दिया
है.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.26/02/2109
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