रविवार, 7 अप्रैल 2019

हम चौकीदार खेलें, तुम चोर चोर खेलो.


ग़ज़ल

हम चौकीदार खेलें, तुम चोर चोर खेलो.
हम तुम को थोड़ा पेलें, तुम हम को थोड़ा पेलो.

कब किसने माल काटा, कब किसने सांप बोये,
कभी हमने तुमको झेला, अभी तुम भी हमको झेलो.

गुलशन के कपड़े  सारे सब मिल के हैं उतारे,
एक चड्डी जो बची है अब वो भी तुम भी लेलो.

दुश्मन को मज़ा आये, वो रोज़ मुस्कराये,
अब गंदगी ज़ुबा से इक दूजे पे उड़ेलो .

सीरी ज़बान किसकी ? है आनबान किसकी ?
अब नीम चड़े हैं ये मौसम के सब करेलो.

जिस पे करें भरोसा, वो ही हमें ठगे है,
प्यासे वतन की कौनउ ना प्यास अब बुझैलो.

डॉ. सुभाष भदौरिया  गुजरात ता.07-04-2016





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