ग़ज़ल
और क्या दिल को सतायें बोलो.
ख़त तेरे फिर से जलायें बोलो.
अब पहाड़ों ने हमें रोका है,
क्या तेरे ख़्वाब में आयें बोलो.
तुम को फुर्सत है कहां गैरों से,
गुल कोई हम भी खिलायें बोलो.
खूँन ज़ख़्मों से लगा है रिसने,
घाव ये किसको दिखायें बोलो.
तुमने मुँह फेर लिया है जब से,
हम ग़ज़ल किस को सुनायें बोलो.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.16-06-2019
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