ग़ज़ल
कभी रोते कभी
हँसते, कभी फरियाद करते हैं.
तुझे अय भूलने
वाले, अभी तक याद करते हैं.
रहे आबाद गुलशन
आंच भी आये न दामन पर,
तेरी खुशियों के
ख़ातिर ख़ुद को हम बर्बाद करते हैं.
कतर कर पर मेरे
ज़ालिम ने हँसकर ऐसे फ़र्माया,
परिन्दे जा तुझे
हम क़ैद से आज़ाद करते हैं.
उजड़ जाते हैं गर
फिर से नई दुनियां बसाते हैं,
जहां भी जाते
दीवाने वहां आबाद करते हैं.
बुढापे में सहारा
हमको देगें देखना इक दिन,
इसी उम्मीद पे
पैदा सभी औलाद करते हैं.
डॉ. सुभाष
भदौरिया
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