ग़ज़ल
और भी ये फैलेगा देश में ये कोरोना.
एक दिन ही रो लेंगे रोज़
रोज़ क्या रोना.
मुर्दे को जलाये वो, ज़िन्दा तुम जलाते हो,
तुम से लाख बहतर है
प्यारा प्यारा कोरोना.
मौत की तबाही से क्यों
हमें डराते हो.
जो भी आय सह लेंगे, जब भी
हो जो भी होना.
खूँन के ये दाग़ों को कब तलक
छिपाओगे,
और भी नज़र आयें, हाथ का
ये क्या धोना.
राजधानी में जब से संत बस
गये लोगो,
आग आसमां से बरसे, अपनों को पड़ा खोना.
आज कल किसी को मोबाइल
करो. कोरोना वायरस से बचने के लिए सलाह शुरु हो जाती है मसलन हाथ किसी डिटरजन से
धोओ, दूरी बना के रखो, तंग आ गये हम और ये ग़ज़ल हो गयी.
कोरोना में मौत आहिस्ता
आहिस्ता बड़े प्यार से होगी ऐसा ज्ञानी बता रहे हैं मोबाइल हो या टी.वी. सब जगह
कोरोना की पेलम पेल. कौन जाने कब इसकी चपेट में आ जाये. मैं मानता हूं ज़िन्दा
जलने में ज़्यादा तकलीफ़ होती होगे जो जले वही जानते होंगे.
इसलिए मेरे देश के लोगो
कोरोना से मत डरो.
कोरोना का मुकाबला करना सीखो गुलामी नहीं.
जिस धज़ से कोई मक़्तल को
गया वो शान सलामत रहती है.
ये जान तो आनी जानी है इस
जान की परवाह क्या कीजे.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात
ता.13-03-2020
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