ग़ज़ल
दिल से भी मिटाओ तो जाने ये नक़्श मिटाने से पहले.
बेहतर मुझे लौटा देना ख़त मेरे जलाने से पहले.
तबियत भी है कुछ उखड़ी उखड़ी मुखड़ा भी है कुछ फीका फीका,
सरकार मेरे क्यों गुमसुम हैं अहवाल सुनाने से पहले.
घर वीरां करके कहते हैं, घर अपना बसा लेना तुम भी
अपना सा समझते हैं सबको ये राय बताने से पहले .
रोओगे कभी चुपके चुपके जब जिक्र हमारा निकलेगा,
आँसू बनकर मैं बरसूँगा सावन के आने से पहले.
इक जगह से बाँधू सौ टूटे हालात भी कितने ज़ालिम हैं,
इक आग नई लग जाती है इक आग बुझाने पहले .
बेहतर मुझे लौटा देना ख़त मेरे जलाने से पहले.
तबियत भी है कुछ उखड़ी उखड़ी मुखड़ा भी है कुछ फीका फीका,
सरकार मेरे क्यों गुमसुम हैं अहवाल सुनाने से पहले.
घर वीरां करके कहते हैं, घर अपना बसा लेना तुम भी
अपना सा समझते हैं सबको ये राय बताने से पहले .
रोओगे कभी चुपके चुपके जब जिक्र हमारा निकलेगा,
आँसू बनकर मैं बरसूँगा सावन के आने से पहले.
इक जगह से बाँधू सौ टूटे हालात भी कितने ज़ालिम हैं,
इक आग नई लग जाती है इक आग बुझाने पहले .
डॉ. सुभाष भदौरिया,अहमदाबाद. India. ता.27-5-07
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जवाब देंहटाएंइश्क वो आतिश है गालिब जो लगाए ना लगे और बुझाये ना बने.........
जवाब देंहटाएंजनाब किसी टूटे हुए दिल के तार बजा दिए आपने ................. इरशाद ............................
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंहिन्दी चिठ्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है...
http://vijaykumardave.blogspot.com/