शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

वो उफनती हुई इक नदी होगयी.

ग़ज़ल
दूर मुझ से मेरी ज़िन्दगी हो गयी.
मेरी चाहत में कोई कमी हो गयी.
इक टूटा हुआ में शिकारा हुआ,
वो उफनती हुई इक नदी हो गयी.
मेरी आँखों में रहते थे जो रात दिन,
उनको देखे हुए इक सदी हो गयी.
उसका चेहरा मुझे याद क्या आगया,
दिलके खंडहर में फिर रौशनी हो गयी.
ख़्वाब में कल वो आयी थी पर्दानशीं,
ख़्वाहिशों की ज़मी फिर हरी हो गयी.
दोस्ती हमने चाही थी उससे मगर
बात ही बात में दुश्मनी हो गयी.
बात करना उसे आगया आजकल,
उसकी पक्की कहीं नौकरी होगयी.
डॉ.सुभाष भदौरिया समय-10-40PM

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुभाष जी

    सुन्दर लगी आपकी गज़ल. बहुत दिनों के बाद पढ़ा आपको.
    उसका चेहरा मुझे याद क्या आगया,
    दिलके खंडहर में फिर रौशनी हो गयी.

    खूबसूरत अंदाज़ है आपका

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  2. बहुत उम्दा...


    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  3. राकेशजी कविता में भाषा और प्रतीकों के अंदाज़ तो कोई आपसे सीखे.ब्लॉग जगत में श्रंगार रस का वर्णन करने में कोई आपका सानी नहीं.
    आपने नवाज़ा तो जी उठे.आप सधे हुए गीतकार हैं मेरा काम ग़ज़ल पर है इसलिए आपके बारे में तफ़्सील से कुछ नहीं कहता आपको पढ़ता ज़रूर हूँ और अंदर से भर जाता हूँ.एक ख़ास बात आपकी ये है कि आप अपनी गरिमा कभी नहीं छोड़ते हमारे सबको पता है.क्या कहें आदतों से मज़बूर हैं.
    कभी कभी दीवानों की भी सुधि लेते रहिए.आमीन.

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  4. उड़न तस्तरी ने बहुत दिनों के बाद वीराने में दस्तक दी.
    आप तो गुलों और तितलियों की ही बस्ती में करम फ़र्मा रहते है हुज़ूर और यहां दीवाने हैं कि तरस जाते दीदार के लिए.
    आप हमारी कुटिया में पधारे समझो हमारी दीवाली हो गयी.इस अंजुमन में भी आते जाते रहिए साहब.
    आप और आपके परिवार दीवाली के ढेर सारी शुभकामनाएं.
    आपको जब हम छेढ़ा करें तो दिल पर न लिया करें.
    क्या करें आपकी अदायें भी किसी नाज़नी से कम नहीं ब्लॉग जगत में से रुठकर जाने के जलवे का जबाब नहीं फिर जोहराजबीनों का मनाना.हाय हम किस से प्रेरणा लेंगे.हमें बहुत जलन होती है क्या करें. हाय कोई हमसे भी प्रेरणा लेता गरीब का दिल रह जाता.आप मुद्दतों के बाद आये बहुत अछ्छा लगा साहब.

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  6. सतीशजी,
    ईमानदारी की मत पूछिये,हमने अपनी ग़ज़ल में कहा ही है-
    गर्दन भी उतारी जाती है और हाथ कटाये जाते हैं.
    ख़ामोश रहें कुछ न बोले गूंगे भी बनाये जाते हैं.
    हम गुजरात सरकार शिक्षा विभाग वर्ग-2 में राज्यप्रात्रति अधिकारी तथा केन्द्र में एन.सी.सी के वर्ग-1 अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं.
    ईमानदारी की वजह से राज्य सरकार ने चार वर्षों से रेग्यूलर इंक्रीमेंट रोक रखे हैं.हाल में प्रिंसीपल के प्रमोशन में से नाम बाकात रखा गया है.राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारियों की ज़्यादती के खिलाफ़ गुजरात उच्चन्यायाल में दो पीटीशन दाखल कर रखी है उन्हें जबाब नहीं सूझ रहा तारीख पर तारीख मांग रहे हैं.
    ले तारीख दे तारीख का खेल चल रहा है.
    एक ग़म हो तो रोयें बकौले ग़ालिब
    मेरी किस्मत में ग़म गर इतने थे,
    दिल भी या रब कई दि होते.
    हम जब तक ग़ज़लों में हैं तब तक ही ठीक लेखों में
    क़यामत बर्पा होती है साहब.ये लेख आप देख कर अंदाज़ा लगा लें-http://subhashbhadauria.blogspot.com/2008/02/blog-post_22.html

    http://subhashbhadauria.blogspot.com/2008/01/blog-post_13.html

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