ग़ज़लपार सरहद के अब तो जायेंगे.
दुश्मनों को मज़ा चखायेंगे.
बाँधकर मुश्क सब कमीनों की,
खींचकर घर से उनके लायेंगे.
आँसुओं का जवाब मांगेंगे,
खूँन को कैसे हम भुलायेंगे.
आग बरसेगी आसमां से अब,
हम कयामत तुझे दिखायेंगे.
बात कश्मीर की तू जाने दे,
अब कराची भी हम मिलायेंगे.
जान दे देंगे हम वतन के लिए,
बच्चे बच्चे ये गुनगुनायेंगे.
अब तो कुरबानियों को मौसम है,
लोरियां कैसे हम सुनायेंगे.
अम्न की बस्तियां बसाने को,
क्या हुआ हम जो उजड़ जायेंगे.
ये ग़ज़ल उपरोक्त तस्वीर से वाबस्ता है जो हमारे हिन्दुस्तानी जांबाज़ सिपाहियों की है.
ता.08-12-08 समय-11-30
दुश्मनों को मज़ा चखायेंगे.
बाँधकर मुश्क सब कमीनों की,
खींचकर घर से उनके लायेंगे.
आँसुओं का जवाब मांगेंगे,
खूँन को कैसे हम भुलायेंगे.
आग बरसेगी आसमां से अब,
हम कयामत तुझे दिखायेंगे.
बात कश्मीर की तू जाने दे,
अब कराची भी हम मिलायेंगे.
जान दे देंगे हम वतन के लिए,
बच्चे बच्चे ये गुनगुनायेंगे.
अब तो कुरबानियों को मौसम है,
लोरियां कैसे हम सुनायेंगे.
अम्न की बस्तियां बसाने को,
क्या हुआ हम जो उजड़ जायेंगे.
ये ग़ज़ल उपरोक्त तस्वीर से वाबस्ता है जो हमारे हिन्दुस्तानी जांबाज़ सिपाहियों की है.
ता.08-12-08 समय-11-30
बहुत सही जज्बा है आपका !
जवाब देंहटाएंरामराम !
सुंदर ओजपूर्ण पंक्तियाँ हैं.अन्याय सहने के बाद ऐसे विचार सहज ही मन में आते हैं.
जवाब देंहटाएंapke jajbe ko slaam
जवाब देंहटाएंसही लिखा है आपने .
जवाब देंहटाएंताऊजी राम राम,रंजनाजी,मनविन्दरजी,विवेकजी क्या करूँ सिर्फ लिख ही सकता हूँ इसी का ग़म खाये जा रहा हैं. उर्दू शायर बशीरबद्र याद आ गये-
जवाब देंहटाएंबड़े शौक से मेरा घर जला,
तुझे आंच भी न आयेगी,
ये ज़ुबां किसी ने खरीद ली ,
ये कलम किसी की गुलाम है.
शिक्षा विभाग में राज्य पात्रित अधिकारी होने के नाते गुजरात राज्य सरकार के नियम लागू हैं.
बहुत सारी बंदिशे हैं पर तबियत का क्या करूँ जो ऐसे शेर कहलवाती है.
मेरी परवाज़ जानना चाहो,
मुझको आज़ाद कर के देखो तो.
रूहें तुम से सवाल पूछेंगी,
अहमदाबाद कर के देखो तो.
डॉ.इक़बाल साहब के इस शेर को तो मेरे जैसा भुक्तभोगी ही समझ सकता है-
ओ ताइरेलाहूती उस रिज़्क से मौत अच्छी,
जिस रिज़्क से आती हो परवाज़ में कोताही.
जरा सी परवाज़ मे जाने कितने ट्रांसफर हुए हैं,चारसाल से रेग्युलर इंक्रीमेन्ट रोके गये, अभी हाल मे प्रिंसीपल के प्रमोशन लिस्ट से नाम बाहर.सबकी गुजरात हाईकोर्ट में पीटीशन कर रखी है.
ले तारीख दे तारीख के खेल के बाद अब केश एडमिट हो चुका है 15 साल सर्विस के बाकी हैं तब तक फैसला हो जाये नही तो पेंशन तो मिलने से रही.
क्या करें साहब ग़ज़लों में गालियां यो ही नहीं लिखते कमज़र्फों को .
ज्ञानी न समझे तो हम क्या करें.