ग़ज़ल
हादसे हम को रुला देते हैं.
और वे हैं कि सज़ा देते हैं.
भौंकने पर न करो तुम गुस्सा,
चोर का कु्त्ते पता देते हैं.
अपने ज़ख्मों पे नमक छिड़के हैं,
दुश्मनों को वे दवा देते हैं.
बात सुनते नहीं हैं वो अपनी,
हम भी बहरों को सदा देते हैं.
आग सुलगे है मेरे दिल में अभी,
आप क्यों और हवा देते हैं.
हम अंधेरों को भगाने के लिए,
झोपड़ी अपनी जला देते हैं.
अपनी हालत को देखने वाले,
ज़ल्द मरने की दुआ देते हैं.
हम लड़े जिनके हकों की ख़ातिर,
कुछ दिनों में वे भुला देते हैं.
जब भी मिलते हैं महरबां मेरे,
और भी दिल को दुखा देते हैं।
हादसे हम को रुला देते हैं.
और वे हैं कि सज़ा देते हैं.
भौंकने पर न करो तुम गुस्सा,
चोर का कु्त्ते पता देते हैं.
अपने ज़ख्मों पे नमक छिड़के हैं,
दुश्मनों को वे दवा देते हैं.
बात सुनते नहीं हैं वो अपनी,
हम भी बहरों को सदा देते हैं.
आग सुलगे है मेरे दिल में अभी,
आप क्यों और हवा देते हैं.
हम अंधेरों को भगाने के लिए,
झोपड़ी अपनी जला देते हैं.
अपनी हालत को देखने वाले,
ज़ल्द मरने की दुआ देते हैं.
हम लड़े जिनके हकों की ख़ातिर,
कुछ दिनों में वे भुला देते हैं.
जब भी मिलते हैं महरबां मेरे,
और भी दिल को दुखा देते हैं।
डॉ.सुभाष भदौरिया
बहुत अच्छी, सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंकामयाब ग़ज़ल के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंबढिंया गजल
जवाब देंहटाएंbehatreen
जवाब देंहटाएंapake dogi ka foto link kiyaa hai
mukul's blog par anumati deejie sir ji