अहमदाबाद में पहले और अब शहेरा में डॉ.सुभाष भदौरिया
ग़ज़ल
क्या हमारा है हाल मत पूछो.
हमसे ऐसे सवाल मत पूछो.
हमने थोड़ी जो ज़ुबां खोली तो,
फिर मचेगी बवाल मत पूछो.
पांव में अपने पड़ गये छाले,
सुर्ख उनके हैं गाल मत पूछो
साज़िशें खा गई ज़माने की,
अपना जाहो ज़लाल मत पूछो.
आज इसके, तो साथ कल उसके,
है सियासत छिनाल मत पूछो.
चंद टुकड़ों में,चंद टुकड़ों में,
मुल्क बेचें दलाल मत पूछो.
हाथी घोडों की चाल समझे हैं,
तुम वज़ीरों की चाल मत पूछो.
हमको भेड़ों व बकरियों की तरह,
कर रहे हैं हलाल मत पूछो .
मछलियां जाएगीं कहां बच के,
हर तरफ फैले ज़ाल मत पूछो.
चील और कौए मौज़ करते हैं,
बस इसी का मलाल मत पूछो.
आप आये ग़रीब ख़ाने पे ,
हो गये मालामाल मत पूछो.
डॉ.सुभाष भदौरिया.ता.03-05-09 समय 8-15AM
रविवार, 3 मई 2009
क्या हमारा है हाल मत पूछो.
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आज इसके, तो साथ कल उसके,
जवाब देंहटाएंहै सियासत छिनाल मत पूछो. ... वाह क्या बात कही है । बहु सरस बात छे ।
રાઠૌડ ભાઈ બાત સરસ નથી સાચી છે.
जवाब देंहटाएंશહીદો નું બલિદાન બધુ પાણીમાં ગયુ.આ રાજકરણી નમાલિયાઓ ગમે તે હદે જાય તેવા છે.
आज पहलीबार किसी हमज़बान ने गुजराती में बात की.
राठौड़जी हमारे गुजराती ग़ज़ल के मर्हूम शायर शेखादम आबूवाला फ़र्माते हैं-
गाँधीजी वेचाई रह्या छे आजे बजार मां.
अफ़सोस नी छे वात के ते पण उधारमां.
आप अमारा घेर पधार्या बहुस सरस अमने लाग्युं.आवजो बापू बीजी वखत चापाणी करशुं हों.