ग़ज़ल
ये कैसा उजाला है, ये कैसी दिवाली है.
सब्जी भी हुई गायब, खाली मेरी थाली है.
हमने तो कटोरी में डुबकी को लगा देखा,
है दाल बहुत मँहगी और जेब भी खाली है.
सौ-दिन के करिश्मे का कुछ होश करो साहब,
सूरत तो बहुत भोली, पर चाल निराली है.
लोगों की लुगाई ने, घर ऐसे सँभाला है,
शक्कर न मिली गुड़ की,फिर चाय बनाली है.
कानों में कोई जैसे, तेजाब उड़ेले हो,
मँहगाई ने लोगों की अब नींद चुराली है.
गालों पे तुम्हारे तो सुर्ख़ी है बहुत सुर्ख़ी,
ख़ूँ पी के गरीबों का जो प्यास बुझाली है.
हालात ने हाथों को है बाँध रखा अब तक,
हैं तीर भी तरकश में और दिल भी बबाली है.
आवाज़ पे मारे हैं, हम तीर निशाने पे
पुरखों से मिली थाती हमने तो सँभाली है.
तुम अपने सरों की अब परवाह करो लुच्चो,
पगड़ी जो मेरी तुमने सड़को पे उछाली है.
ये कैसा उजाला है, ये कैसी दिवाली है.
सब्जी भी हुई गायब, खाली मेरी थाली है.
हमने तो कटोरी में डुबकी को लगा देखा,
है दाल बहुत मँहगी और जेब भी खाली है.
सौ-दिन के करिश्मे का कुछ होश करो साहब,
सूरत तो बहुत भोली, पर चाल निराली है.
लोगों की लुगाई ने, घर ऐसे सँभाला है,
शक्कर न मिली गुड़ की,फिर चाय बनाली है.
कानों में कोई जैसे, तेजाब उड़ेले हो,
मँहगाई ने लोगों की अब नींद चुराली है.
गालों पे तुम्हारे तो सुर्ख़ी है बहुत सुर्ख़ी,
ख़ूँ पी के गरीबों का जो प्यास बुझाली है.
हालात ने हाथों को है बाँध रखा अब तक,
हैं तीर भी तरकश में और दिल भी बबाली है.
आवाज़ पे मारे हैं, हम तीर निशाने पे
पुरखों से मिली थाती हमने तो सँभाली है.
तुम अपने सरों की अब परवाह करो लुच्चो,
पगड़ी जो मेरी तुमने सड़को पे उछाली है.
डॉ.सुभाष भदौरिया. ता.03-09-09
क्या बात है भाईजी..........
जवाब देंहटाएंक्या तेवर है.........
वाह !
बहुत ख़ूब.............
ख़ूब खाल खींची ....
__________अभिनन्दन आपकी ग़ज़ल का
____मुआफ़ करें शानदार ग़ज़ल का...........
सुभाष जी
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
बात क्या करें इन कमीनों के इनायत की
जब खुद ही हमने पैरों पर कुल्हाडी मार ली है
रत्नेश त्रिपाठी