बुधवार, 9 दिसंबर 2009

ट्रेन छूटे हुए इक ज़माना हुआ.

ग़ज़ल
दिल को टूटे हुए इक ज़माना हुआ.
भाग फूटे हुए इक ज़माना हुआ.

प्लेटफार्म पे हम ताकते रह गये,
ट्रेन छूटे हुए इक ज़माना हुआ.

वो न आये मनाने हमें आज तक,
हमको रूठे हुए इक ज़माना हुआ.

फिर मिलेंगे दुबारा किसी मोड़ पर,
वादे झूटे हुए इक ज़माना हुआ.

इस मुसाफ़िर पे अब कुछ बचा ही नहीं,
उसको लूटे हुए इक ज़माना हुआ.

डॉ.सुभाष भदौरिया ता.09-12-09

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस मुसाफिर पे अब कुछ बचा ही नहीं
    उसको लुटे हुए इक ज़माना हुआ
    वाह ! बहुत खूब !

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  2. फ़िर मिलेगा सब कुछ! फ़िर वादे होंगे , फ़िर मुलाकात होगी।
    सुन्दर अंदाज। ताजा-ताजा हिसाब लगा गजल का।

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  3. बहुत देर की दर पे आँखें लगी थी.
    आज देखा तो दंग रह गया एक साथ चार कोमेंट का आना.

    1-गोदियालजी स्वागत है आपका ब्लाग पर.
    बाख़ुदा यकीन कीजिए इस मुसाफिर सचमुच कुछ भी नहीं बचा लूटने वाले सब ले गये. पर आपने अपनी दाद से मालामाल कर दिया.
    2-अनूपजी आपकी दुआ है -फिर मिलेगा,सब कुछ फिर वादे होंगे ,फिर मुलाकात होगी. इसी उम्मीद पर तो जी रहे हैं साहब.आपकी नवाज़िश कहीं बीमार न कर दे.
    3- वंदनाजी बहुत सुंदर हमारे ज़ख्मों की दश्तकारी आपको पसन्द आ रही है और आप हमारे अनुसरण कर्ता की सूची में शीर्षस्थ है.
    मैं आपको पढ़ रहा हूँ आपके जज़्बात अगर छन्द बद्ध कविता का रूप लें लें तो सोने में सुहागा सुहागा होगा.मैं अपने आप को टिप्पणी करने से रोक नहीं पाऊँगा.
    आप हमारी दर्दगाह में आते जाते रहिए अल्फ़ाज़ में जब मौसिकी आती है तो पाठक पर जादू सा असर होता है ये हुनर ज्यों ही आपके पास आया हम आपके मुरीद हो जायेंगे.
    4- परमजीतजी आपको ग़ज़ल पसंद आयी शुक्रिया जनाब.

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  4. सुभाष भाई
    हालाकि पिछले दिनों नेट पर आना बहुत कम रहा किंतु एेसा नही हुआ कि अवसर मिला आैर आपकी नई रचनाए ना पढी् हों,पर इतनी अच्छी रचनाआंे पर बधाई नही दे सका।
    सभी रचनांए बहुत ही शानदार है।

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  5. दद्दा बहुत दिनों के बाद सुधि ली.आप की कमी अक्सर खलती रही.
    आपको सूरदासजी के शब्दों मे कहूँ तो-

    नीके रहिओ जसुमति मैया.
    जा दिन ते हम तुमसे बिछुड़े काउ न कह्यो कनैया.
    आप जब हमारे ब्लाग पर आतें हैं तो अपने पुरखों वतन की मिट्टी को सोधीं महक का अहसास होता है.आते जाते रहिओ.

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  6. वो न आये मनाने हमें आज तक,
    हमको रूठे हुए इक ज़माना हुआ.

    बेहतरीन ग़ज़ल और लाजवाब शेर...आपको अपनी एक ग़ज़ल के कुछ शेर सुनाता हूँ बुरे लगे तो गाल हाज़िर कर दूंगा और अगर अच्छा लगें तो पीठ हाज़िर है थपथपा दीजियेगा:

    किसको फुर्सत आज के इस दौर में
    रूठ जाने पर मनाता कौन है

    राग अपने और अपनी ढफलियां
    पीठ दूजी थपथपाता कौन है

    हम किसे आवाज दें ‘नीरज’ बता
    देख कर बदहाल आता कौन है

    नीरज

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