
राहों में अगर जो मिल जायें झट से वो किनारा करते हैं.
तस्वीर हमारी वो चुपके चुपके से निहारा करते हैं.
ये बात नहीं वो समझेंगे, ये बात कहां वो मानेंगे,
हम ख़्वाब में उठ उठ के अक्सर उनको ही पुकारा करते हैं.
ठंडी ठंडी रातों की चुभन उस पे ये ग़जब की तन्हाई,
यादों की रजाई से उनकी, मुश्किल से गुज़ारा करते हैं.
अल्फ़ाज़ हमारे गर तुम तक, पहुँचे तो हमारी सुधि लेना,
अब दोस्त नहीं दुश्मन भी मेरी हालत पे विचारा करते हैं.
दिल आपका रखने की ख़ातिर चुपचाप सभी सह लेते हैं,
जीती हुई बाजी को हम तो हँस हँस कर हारा करते हैं.
ग़ज़लों में हमारी ये ख़ुश्बू आती है तुम्हारे ही दम से,
ज़ख़्मों की हमारे अब देखो हम नज़्र उतारा करते हैं.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता. 12-12-09
waah waah.............bahut hi dil ko chhoo lene wali gazal likhi hai.........har sher sundar.
जवाब देंहटाएंराहों में अगर जो मिल जायें झट से वो किनारा करते हैं.
जवाब देंहटाएंतस्वीर हमारी वो चुपके चुपके से निहारा करते हैं.
पढकर मजा आ गया। तस्वीर भी बहुत मौजूं और प्यारी है। इसको देखकर गजल लिखी या गजल के बाद फोटू हुई! ? :)
bhai wah !
जवाब देंहटाएंtaqdeer waale ho.........
badhai !
जनाब डा. साहब, आदाब
जवाब देंहटाएंग़ज़ल बहुत पसंद आयी
ये शेर खास तौर से-
ग़ज़लों में हमारी ये ख़ुश्बू आती है तुम्हारे ही दम से,
ज़ख़्मों की हमारे अब देखो हम नज़्र उतारा करते हैं.
आपकी सभी ग़ज़लें पढ़ने के लिये
जब भी वक्त मिला, इंशा अल्लाह आयेंगे.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
सटीक है हर शॆर!!
जवाब देंहटाएं1-वंदनाजी आपके ब्लाग पर तवील से टिप्पणी कर के आया हूँ. आपकी अछान्दस रचना दिल को छू गयी.
जवाब देंहटाएंआपको ग़ज़ल के अशआर पसन्द आ रहे हैं ये मेरी खुशकिस्मती हैं कभी ना पंसदगी भी बताइयेगा.
2-अनूपजी अब लगता है हमारी ग़ज़लों के साथ साथ तस्वीरों पर भी रिसर्च होगी.
आप ने पूछा है तो बता देते हैं तस्वीर पहले फिर ग़ज़ल.
अब तस्वीर निहारने वाली का एड्रेस मत पूछना वो हमें भी मालूम नहीं है.
आप ने ब्लाग पर लगे ताले खुलवाये अब दिल के ताले सरेआम मत खुलवाइये.
वैसे इन ग़ज़लों को लिखवाने के पीछे आप हैं .
आप अपने चि़्टठा चर्चा पर जो हमारी तस्वीर लगा कर ग़ज़लों को इज़्ज़त दे रहे हैं ये उसी का परिणाम है.
अरे साहब ये हमारी सोफेस्टिकेटिड बदमाशियां हैं.आप पर्दा दर पर्दा नुमाया करवा रहे हैं.
3-उड़न तस्तरी साहब आपने हमारे ब्लाग पर आकर जो इज़्ज़त बख्शी उसके लिए आप की बलाइयां लेने को जी चाहता है.
आप को रम्ज़ों में कहूँ तो-
गुलशन की फ़कत फूलों से नहीं काटों से भी जीनत होती है.
आपकी कविता जागे सारी रात ने हमें जायसी की नायिका नागमती के विरह की याद दिलाई थी क्या उसे मेल से भेज सकते हैं उस पर तवील से कहीं बात करना चाहता हूँ.
एक राज़ की बात मैं जिनका विरोध करता हूँ उनसे मुहब्बत भी बेतहाशा ये हमारी स्टाइल है.अनूप शुक्लजी समझ गये कुछ कुछ आप भी समझने लगे हैं.
आपका गद्य तो श्रीलाल शुक्ल की याद दिलाता है.
आपकी शख़्सियत ने हम से मुकम्मिल ग़ज़ल लिखवाई है.आपकी दिलकश तस्वीर भी हमारे पास आज भी सुरक्षित हैं.आपका आना अच्छा लगा.
1-अलबेला साहब तकदीर वाले हैं तभी तो एक छोटे से गांव में बाल बच्चों से दूर ज़िदगी के ग़ुज़रे लम्हात को देखने का वक्त मिला हैं.
जवाब देंहटाएंकविता मेरे लिए आजा फँसाजा वाला खेल नहीं रिसते ज़ख्म हैं आपकी दुआ क़बूल.
2-शाहिद साहब आपके ब्लाग पर जाकर देखा तो तो आपने ख़ुद तस्लीम किया है कि आपको ग़ज़ल के फ़न के मालूमात नहीं. दुरस्त कह रहे हैं जनाब.
तभी आप एक ग़ज़ल में दो दो बहरों के इस्तेमाल की बात कर रहे हैं जब कि ऐसा होता नहीं हैं मतले से लेकर मक्ते तक एक ही वज़्न बहर का निर्वाह शायर से लिए ज़रूरी होता है इस फ़न को सीखने के लिए किसी उस्ताद की ज़रूरत होती है आजकल सभी पैदायशी उस्ताद हो गये हैं सो ग़ज़ल के नाम पर वाह वाह के सिवा कुछ भी नहीं.
हमारे ग़रीबख़ाने पे आते जाते रहिए ग़ज़ल के फ़न के मालूमात भी हो जायेंगे आमीन..
वाह! क्या बात है!
जवाब देंहटाएंफ़िर से देखकर और खुश होकर जा रहे हैं। अबकी बार सिलसिले से देखा। पहले फोटॊ और इसके बाद गजल। फ़िर से वाह,वाह। आप अपनी हसीन बदमाशियां जारी रखिये। हमें अच्छा लगेगा।
जवाब देंहटाएंतोसे लागे नैना.
जवाब देंहटाएंपर्दानशी साहिबा आपका तोसे लागे नैना का ज़बाब नहीं.
आपका हमारे ब्लाग पर स्वागत है और करम फर्माई का शुक्रिया.गरीबखाने की यूँ ही रौनक बढ़ाती रहें आमीन.
ठंडी ठंडी रातों की चुभन उस पे ये ग़जब की तन्हाई,
जवाब देंहटाएंयादों की रजाई से उनकी, मुश्किल से गुज़ारा करते हैं
अब इस शेर पर क्या कहूँ...सर धुन रहा हूँ जब से पढ़ा है...क्या कह गए हैं आप ?आप को इल्म भी है?...सुभान अल्लाह...भाई जान ,बरसों में ऐसा शेर कहा जाता है वाह ...खुशकिस्मत हैं की ये शेर खुदा ने आपको अता किया अगर कहीं हमारे ज़ेहन में आया होता तो उसकी चौखट से जबीं कभी उठाते ही नहीं...कमाल की ग़ज़ल...
ज़िन्दगी में पहली बार उलटे चलने पर अफ़सोस नहीं हो रहा...उल्टा समझ रहे हैं न आप...याने आपकी नयी से पुरानी ग़ज़लों की और लौट रहा हूँ...और इस सफ़र में जो मज़ा आ रहा है उसे लफ़्ज़ों में बताना न मुमकिन है...
नीरज