ग़ज़ल
नींद रातों की मेरी रोज़ उड़ाने वाले.
खो गये जाने कहाँ दिल को लुभाने वाले.
कोई ई-मेल, कोई फोन, कोई ख़त भी नहीं,
याद आते हैं बहुत हमको भुलाने वाले.
दिल भी वो ले गये चुपके से चुरा कर इक दिन,
मेरे बचपन में खिलौनों को चुराने वाले.
जान लेवा ये तपिश, उस पे तमन्ना उसकी,
तू कभी भूल से आ दिल को सुहाने वाले.
ये अलग बात कलम हाथ कर दिये सबने,
तेरी तस्वीर कहाँ भूले बनाने वाले.
दिन भी सुलगें हैं मेरे, रातें भी तपती हैं मेरी,
तू कभी आ के बरस रोज़ रुलाने वाले.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.02-05-10,
खो गये जाने कहाँ दिल को लुभाने वाले.
कोई ई-मेल, कोई फोन, कोई ख़त भी नहीं,
याद आते हैं बहुत हमको भुलाने वाले.
दिल भी वो ले गये चुपके से चुरा कर इक दिन,
मेरे बचपन में खिलौनों को चुराने वाले.
जान लेवा ये तपिश, उस पे तमन्ना उसकी,
तू कभी भूल से आ दिल को सुहाने वाले.
ये अलग बात कलम हाथ कर दिये सबने,
तेरी तस्वीर कहाँ भूले बनाने वाले.
दिन भी सुलगें हैं मेरे, रातें भी तपती हैं मेरी,
तू कभी आ के बरस रोज़ रुलाने वाले.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.02-05-10,
प्रिंसीपल सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा.जि.पंचमहाल,गुजरात.
Mob-97249 49570
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जवाब देंहटाएंतू कभी आ के बरस रोज़ रुलाने वाले....
जवाब देंहटाएंJo maza intezaar mein hai, wo deedaare yaar mein nahi.
Beautiful creation !
Divya
वाह जी बढ़िया रचना है ...
जवाब देंहटाएंदिल भी वो ले गये चुपके से चुरा कर इक दिन,
मेरे बचपन में खिलौनों को चुराने वाले.
क्या बात है ! वाह !
अद्भुत। अद्भुत!
जवाब देंहटाएंज़ील आपकी प्रोफाइल नहीं सो आपके भी कहाँ दीदार हो पाये.
जवाब देंहटाएंहाय क्या मशवरा है जो मज़ा इंतज़ार में है वो दीदारे यार में नहीं.
आपने ग़ालिब साहब की याद दिला दी.
ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह ,(Adviser)
कोई चारासाज़ होता कोई ग़मगुसार होता.
तेरे वादे पे जिये हम ये जान झूट जाना,
कि खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता.
आपके beutiful creation कहने का जबाब नहीं.
मुहब्बत बनाये रखिये. आमीन.
सैलजी आदतन मैं अपने ब्लाग टिप्पणी करने वाले साहब के ब्लाग का अवश्य जाइज़ा लेता हूँ आपके ब्लाग पर गया आप साहब ग़ज़ले लिखते हैं ग़ज़ल के शिल्प काफिया रदीफ की पहिचान है आपको सिर्फ वज़्न का निर्वाह नहीं सो ठोकम ठोक और उस पर वाह वाह करने वालों का ते कहना ही क्या ये वही लोग हैं जो हर प्रतिभा को वाह वाह की कब्र में इतनी सिफ्त से उतार देते हैं कि उसे पता ही नहीं चलता.
जवाब देंहटाएंजनाब आप हमारी अंजुमन में आये हैं तो हमारा इतना ही कहना है इन वाह वाह वालों वालियों से खुद को बचाना.
ग़ज़ल खाला का घर नहीं है साहब.
बकौले फिराक गोरखपुरी-
उम्र भर का है तजुर्बा अपना,
उम्र भर शायरी नहीं आती.
हम बूढे हो गये पर ढंग के शेर हमें कहना अभी कहां आया.
आप हमारी बात का बुरा न मानना संज़ीदगी लें तो ग़ज़ल ज़रूर आप पर मेहरबान होगी पर उसमें वक्त लगेगा.
2- कुलवंतजी आपके ब्लाग को देखा नन्हीं परी की ज़बानी आप बहुत कुछ प्यार कह रहे हैं ज़ारी रखिये और हाँ मैनु पंजाबी पढ़ना नहीं आती तोड़ा बहुत सुनकर सभी समझ लेते हैं. पंजाबी के शिवकुमार बटालवी को तो क्या कहना पंजाबी दोस्तों के मुँह उनकी ग़ज़ले सुनी
खास कर मैनू तेरा शबाब लै बैठा को आज तक नही भुला पाया.
दिन भी सुलगें हैं मेरे, रातें भी तपती हैं मेरी,
जवाब देंहटाएंतू कभी आ के बरस रोज़ रुलाने वाले.
bahut jordaar panktiya. bahut acchhi gazel.badhayi.
अनामिकाजी आपके ब्लाग को देखा आपकी सदायें भी सुनी. आपके ब्लाग पर लगी दिलकश तस्वीरों का ज़बाब नहीं.आपकी बधाई कबूल है साहिबा. आती जाती रहिए.आमीन.
जवाब देंहटाएंSubhash ji-
जवाब देंहटाएंWo shaks kya hai jisne profile padhkar mujhe jana,
Maza to tab thaa , jab aankh band karke usne pehchana.
Deedaar ki darkaar to, bekaar mein hoti hai,
Pyar ki khusboo to, intezaar mein hoti hai.
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंकई दिन बाद आपकी गजल पढ़ने को मिली
जवाब देंहटाएंइस बीच आप गायब से हो गये थे फिर पिछली पोस्ट पढ़ कर पता चला आप की व्यस्तता और ब्लॉग से दूरी भी वाजिब लगी
गजल पसंद आई :|
हम अच्छी तरह जानते हैं कि आप इससे बहुत अच्छी गजल लिखते हैं :)
BAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंBADHAI AAP KO IS KE LIYE
BAHUT KHUB
जवाब देंहटाएंBADHAI AAP KO IS KE LIYE
1-Zeal इंतज़ार ता उम्र इंतज़ार ही तो शायरी करवा रहा है.
जवाब देंहटाएंआपको हमने पहिचान लिया है बकौले फिराक गोरखपुरी-
बहुत पहले से इन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे अय ज़िंदगी हम दूर से पहिचान लेते हैं.
और दीदार की आरज़ू मत पूछिए ग़म तो इस बात का है-
सब नवाज़े गये उम्र भर के लिए.
हम तरसते रहे इक नज़र के लिए.
यहां लबों पे जान अटकी है आपको दिल्लगी सूझी है.ज़ारी रखिए.
2- मनोजजी आपका ब्लाग देखा खास कर भारतीय काव्य शास्त्र की अच्छी जानकारी आपने उपलब्ध कराई है.
3-वीनस तुम अपनी उम्र से ज़्यादा समझदार हो.ग़ज़ल के काव्यशास्त्र का अच्छा ज्ञान रखते है. ब्लाग की दुनिया में ग़ज़ल के नाम पर बहुत कुछ अल्लम सल्लम है इसकी वज़ह वाह वाह कंपनी के लोग लुगाई जिम्मेदार हैं. वे नये रचनाकारों को वाह वाह नाम की ऐसी घुट्टी पिलाते हैं कि वे फूल कर कुप्पा हो जाते हैं और रचनायें दम तोड़ देती हैं.
तुम इन्हें कुछ समझाने या बताने की कोशिश करोगे तो ये सब दुश्मन हो जायेंगे. अपना कुछ भी मिटाओ मत वह सब उपयोगी है.
4- प्रिय शेखर आपके ब्लाग को देखा.तुम्हारी प्रकृति ग़ज़ल की और है उसके शिल्प का अध्ययन तुम्हें आवश्यक है. ग़ज़ल संबधी ब्लाग पर सुबीर संवाद पर ग़ज़ल विषयक बहुत ही गंभीर सामग्री है उसको पढ़ो और समझो वाह वाही वालों से बचो.
ये लोग गोद में बिठाकर मीठा ज़हर पिलाते हैं इनसे बच गये तो कुछ कर पाओगे.मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं.
सरल भाषा में अच्छे शेर लिखे हैं बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आना हुआ आपके ब्लॉग पर ... और आना सफल हुआ ... अच्छी ग़ज़ल पढने को मिली .... साथ ही हम आपके फोलोवेर में शामिल भी हो गए लीजिये ...अब चूक नहीं होगी ...
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ और अफ़सोस कर रहा हूँ कि पहले आपके बारे में किसी ने क्यों नहीं बताया. आप बहुत..बहत्त बहुत ही अच्छा लिख रहे हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि ब्लॉग पर दिए जाने वाले कमेंट्स की असलियत से आप आगाह हैं, आपकी समझ, हुनर, टैलेंट का परिचय इसी से मिल जाता है. गजल में जिन नए कंटेंट्स का इस्तेमाल आपने किया है, निस्संदेह गजल उन से रिच हुई है.
जवाब देंहटाएंयहाँ, नेट पर, एक भीड़ है, सैलाब है, मौलिक रचनाकार ढूंढना बेहद मुश्किल काम है. फिर भी, मैंने आपको ढूंढ ही लिया.
1-पुखराज साहिबा आपने हमारे फोलोअर में शामिल होकर हमें जो इज़्ज़त बख्शी है उसके लिए हम आपकी दीदावर नज़र के शुक्र गुज़ार हैं.खैर खबर लेती रहिएगा.
जवाब देंहटाएं2- सर्वत साहब आप बहुत ही संज़ीदा ग़ज़लगो हैं. आपके ब्लाग को देखा. आप ग़ज़ल की तमाम बारीकियों निर्वाह के साथ साथ आपकी सोच आम दलित पीड़ित किसान वर्ग की तरफ है.वक्त के जानलेवा हालात को भी बेहतर समझते हैं.
आपकी ग़ज़ल के इस जानदार मतले ने हमें आपकी अदबी शख्सशयित से तआरुफ़ करा दिया-
रोटी लिबास और मकानों से कट गये.
हम सीधे सादे लोग सयानो से कट गये.
हमारे से ज़्यादा इस ग़ज़ल के मतले को कौन समझेगा. अहमदाबाद परिवार से दूर 150 किमी दूर हम रोटी मकान से कटे ज़बान से भी कट गये. ऐसी जगह है जहां हिन्दी उर्दू तो दूर लोग सही गुजराती भी नहीं बोलते.
गुजरात राज्य के सयानों ने जब प्रिंसीपल के प्रमोशन की लिस्ट बनायी तो हमारे साथ ऐसा ही हुआ.अँधा बाटे रेवड़ी अपने अपने देअ.
बीस साल की लंबे सरकारी गुलामी में हम लहूलुहान सही पर अभी अँधे नहीं हुए ये क्या कम है साहब.
आप मेरे तीन साल के नेट के अनुभव में पहले प्रामाणिक रचनाकार हैं जो शिद्दत के साथ महसूस कर लिखते हैं. आपकी सोच दलित पीड़ित,किसानों के साथ है.मैं आपका तहेदिल से इस्तिक़बाल करता हूँ जनाब हम तो आपके मुरीद हो गये.
खैर ख़बर लेते रहिओ.