शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

घर से बिछुड़े तो घर याद आया बहुत.

ग़ज़ल
घर से बिछुड़े तो घर याद आया बहुत.

अपनी कोशिश में उसको भुलाया बहुत.

दिल अकेले में रोया बहुत फूटकर,

सामने उसके मैं मुस्काराया बहुत.

हाल आँखोंने मेरी बयां कर दिया,

मैनें ज़ख़्मों को अपने छुपाया बहुत.

अपनी किस्मत में थीं यूं तो वीरानियाँ,

दुश्मनों ने भी दिल को दुखाया बहुत.

ज़िन्दगी एक अभिशाप से कम नहीं,

भूतप्रेतों का है हम पे साया बहुत.

उसने खोला नहीं ये अलग बात है,

उसका दरवाजा तो खटखटाया बहुत.

झूठ की तो नवाज़िश हुई हर तरफ,

सच को सूली पे उसने चढ़ाया बहुत.

 हमें अहमदाबाद अपने परिवार से बिछुड़े तीसरा साल शुरू हो गया है कहने को तो प्रिंसीपली का प्रमोशन  है पर सज़ा से कम नहीं. गुजरात का उच्चशिक्षा विभाग  द्वारा रेग्युलर प्रिंसीपल की पोस्टिंग के समय अँधा बांटे सीकरी अपने अपने देय जैसा खेल हुआ. अँधों अँधियों को तो सीकरी (मिठाई)   मनमांगी पोस्टिंग मिली पर हमें शहरा जैसे छोटे गाँव में पटका गया जहां रोटियों के लाले पड़ गये  खाने की एक होटल नहीं सो अपने हाथ से कोलेज छूटने के बाद टिक्कड़ डालो और तब एक टेम खाओ और गुजरात के नाथ के गुन  स्वर्णिम स्वर्णिम गाओ पर कब तक ? गुजरात उच्चशिक्षा विभाग के मानसिक त्रास से  प्रिंसीपाल प्रमोशन लिस्ट की एक बहिन ने प्रमोशन का त्याग कर वापिस अध्यापक रहना स्वीकार कर लिया वे हमसे भी यही उम्मीद रखते हैं तभी अतिरिक्त शहेरा से 90 किमी.दूर झालोद विज्ञान कोलेज का चार्ज देकर मानसिक त्रास दे रहे हैं कोई शैक्षणिक स्टाफ की दो साल से नियुक्ति नहीं कर रहे.
 गुजरात के उच्चशिक्षा कमिश्नरश्री के अधिकारी गण ने जब अपने कोलेज को दी गयी ग्रांट में 10 हजार रुपये की एक बेंच सरकारी कोलेजों के प्रिंसीपालों को ज़बरदस्ती  साबरमती जेल से खरीदने  के लिए बाध्य किया तब हमें बहुत आश्चर्य हुआ.
हमें एक मित्रने सावधान किया था  कि तुम जेल विभाग से 10,000  रुपये एक बेंच उनके बिना लेखित आदेश के मत खरीदना. 10.000 रुपये की एक बेंच कहीं होती होगी.हमने अपने कोलेज के लिए टेंडर द्वारा बढिया से बढ़िया 2119 रुपेये की खरीदी. फिर 10000 की क्यों खरीदें.
साबरमती जेल वालों से ज्यादा तो वन विभाग बेहतर है उनके पास खुद की लकड़ी तो है जेल के पास नहीं फिर ये सारी कार्यवाही की उच्चखरीद समिति होती हैं जिसमें सचिव भी शामिल होते हैं पर ये सब किये बिना जेल विभाग को सीधा आदेश देना दाल में काला है.
 मित्रने हमें ये भी बताया कि जो  जो गुजरात के सरकारी कोलेजों के प्रिंसीपल साबरमती जेल विभाग से एक बेंच 10.000 की आँख बंद करके खरीदेंगे वे देर सबेर साबरमती जेल में जायेंगे.
हमें जेल में नहीं जाना सो हमने ऐसी बेंच को  जबरदस्ती खरीदने से मना कर दिया.
साबरमती जेल से शहेरा गाँव अच्छा हम उम्र भर वहीं पड़े रहेगे बुढ़ापे में हमें जेल से बेंच खरीद जेल नहीं जाना.

कहने को गुजरात शिक्षा विभाग में शिक्षा मंत्रीश्री रमणवोराजी है, राज्यकक्षा की शिक्षा मंत्री श्रीमती वसुबहिन त्रिवेदी है और फिर गुजरात के नाथ मुख्यमंत्रीश्री नरेन्द्रमोदीजी है पर कोई कहां सुनता है

हे राम बापू की याद आ रही हैं पर वे महात्मा मंदिर गाँधीनगर में हमें नहीं मिले वे बिहार नितिशजी के पास हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नितीशजी ने तमाम सरकारी विभाग के अधिकारियों को अपनी संपति घोषित करने की आखिरी तारीख फरवरी दी है उसके बाद उनकी तनखाह रोक दी जायेगी गुजरात के अखबार संदेश में खबर हैडिग में है. भृष्टाचार मुक्ति का ये अभियान वास्तव में प्रशंसनीय है.
हमारे गुजरात में मुख्यमंत्री मोदीजी ऐसा करें तो मज़ा आ जाये.
पर वे नहीं करेंगे वे जानते हैं ऐसा करेंगे तो आधे से ज्यादा आई.ए.एस.आई.पी.एस.के साथ उच्च अधिकारी साबरमती जेल में होगें फिर सरकार कौन चलायेगा. पर बिहार के मुख्यमंत्री नितीशजी को चिन्ता नहीं
अब समझ में आया हमें हमारे गाँधी बापू की आत्मा गाँधीनगर महात्मा मंदिर में क्यों नहीं ? 

बिहार में क्यों बस गयी हैं.
 प्रिंसीपल डॉ.सुभाष भदौरिया.ता.25-2-2011















कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें