ग़ज़ल
जागो अय वतन के लोगो अब, है अपना देश तो ख़तरे में.
बेचें हैं वतन को सब मिलकर, हम खाली हाथ हैं पहरे में.
ख़ामोश समन्दर है गर जो, बुज़दिल समझ लेना उसको,
आने को सुनामी है कोई, तूफान छिपा है गहरे में.
जो चोर, उचक्के क़ातिल हैं सब ताज संभाले बैठे हैं,
हम जान लड़ायें सीमा पे, पर आज खड़े हैं कटहरे में.
सीने पे लगे गर गोली जो, सैनिक तो मुकद्दर माने हैं,
वर्दी पे लगायें दाग़ सभी, बस ये ही दर्द है, चेहरे में.
चहुँ ओर अमन, चहुँ ओर चमन, क्या खूब तमाशा करते हैं,
भूखा है वतन, प्यासा है वतन,हालात है ये ही सुनहरे में.
ये ग़ज़ल देश के सेनापति जनरल वी.के. सिंह की उपरोक्त दर्द भरी तस्वीर एवं वर्तमान स्थितियों को देखते हुए हो गयी है.
पूरे संसार में अपने कर्तव्यनिष्ठा के लिए जाने वाली भारतीय सेना के सर्वोच्च अधिकारी के साथ जो तमाशा हो रहा है उससे सारा देश सकते में है. एक जनरल कक्षा के अधिकारी को न्याय मांगने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़े, सेना की ज़रूरतों, भृष्टाचारियों की करतूतों को गुप्त रूप से देश के प्रधान मंत्री को गुप्त रूप से अहवाल देने की प्रकिया को आम कर, चोर कोतवाल को डाटें वाला खेल चल रहा हो तब समझ लेना चाहिए पानी सर से गया. कल चाय की दुकान पर एक नागरिक ने इस तमाशे पर अपनी प्रतिक्रिया देत हुए मुझ से कहा कि आपको नहीं लगता देश की सुरक्षा के हित में सेना को को अपने हाथ में बागडोर ले लेना चाहिए.
मैंने कुछ नहीं कहा पर देश की जनता का प्रतीक वह आम आदमी बहुत कुछ कह गया.पर सोच रहा हूँ कि भृष्टाचारी,दुराचारी, आंतकवादी, और पड़ोसी सीमा पर दुश्मन की गतिविधियां तेज हो रही हों तो के सिवा विकल्प ही क्या है लोगों सड़को पर कुछ कहेंगे तो रामदेव बाबा जैसा हाल होगा. उनके पास सत्ता है ताकत है.
आम आदमी लाचार बेवश मँहगाई की चक्की में पिस रहा है वो दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में रहता है तो दूसरी तरफ हाल ये है-
गरीबों की दुनियाँ लुटी जा रही है.
हकूमत के अँधों को नींद आ रही है.
देश हुकूमत के अँधों की जगह आँखों वालों के हाथ में हो अब ये ज़रूरी भी है.आमीन.
मैं इस पोस्ट का लिंक फेसबुक पर दे रहा हूँ ताकि देश का युवावर्ग भी जाने को और भी ग़म हैं दुनियां में मुहब्बत के सिवा .
डॉ. सुभाष भदौरिया.
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