ग़ज़ल
आख़िरी वक़्त अब तू सदायें न दे.
और जीने की अब तू दुआयें न दे.
ख़ूँन बहने दे ज़ख़्मों से मेरे यूँ ही,
रोकने की उसे अब दवायें न दे.
सांस रुकने लगी, तो तुझे क्या पड़ी,
अपने होटों से अब तू हवायें न दे.
ज़िन्दगी भी बला से कहां कोई कम,
इस तरह खूब सूरत बलायें न दे.
बेवफ़ाई हुनर अब हुई आजकल,
मेरे हिस्से में अब तू वफ़ायें न दे.
शौक़ से जान ले ले भले तू मेरी,
रोज़़ हिस्से में मेरी सज़ायें न दे.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात.ता.०२-०६-२०१४
बेवफ़ाई हुनर अब हुई आजकल,
जवाब देंहटाएंमेरे हिस्से में अब तू वफ़ायें न दे.
सुन्दर