ग़ज़ल
तमाशे पे तमाशा कर रहे हैं.
खुलाशे पे खुलाशा कर रहे हैं.
लगी है मीडिया ठुमके लगाने,
क़लम को भी रक्कासा कर रहे हैं.
मिले हैं चूहों से ये पिंजड़े वाले,
सभी फँसने की आशा कर रहे हैं.
हमारी ऐसी तैसी हो रही है,
वो झांसे पे हैं झांसा कर रहे हैं.
चढ़ा सूली गरीबों को वो देखो,
ठुकासे पे ठुकासा कर रहे हैं.
वतन की अब बची सांसे कहां हैं,
फ़कत अब वो पचासा कर रहे हैं.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.20-12-2016 गुजरात
बहुत चुटीले शेर हैं ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबहुत चुटीले शेर हैं ... लाजवाब ...
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