ग़ज़ल
सारी ग़लती ये सब हमारी है.
पाँव पर जो कुल्हाड़ी मारी है.
हाथ से तो किला गया लोगो,
ताज़ जाने की अबके बारी है.
द्रौपदी देश हो गया अब तो,
हार बैठा उसे जुआरी है..
उसकी उँगली पे नाचे है सिस्टम,
कितना उस्ताद ये मदारी है.
वो हवा में दबोच ले सबको,
कितना शातिर ये अब शिकारी है.
जो भी आये वही लगे ठगने,
मुल्क की जनता तो बिचारी है.
इसको महसूस करके देखो तुम,
ये ग़ज़ल तो फकत तुम्हारी है.
डॉ. सुभाष
भदौरिया गुजरात ता. 01-05-2018
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