ग़ज़ल
बेटा विकास तुमने क्या काम कर दिया है.
पापा का और चाचा का नाम कर दिया है.
खेतों में लोटा ले के, जाते थे जो कभी वे,
हगने का उनको घर में, आराम कर दिया है.
पटरी के जो किनारे, आते थे जो नज़ारे,
आँखों को अब हमारी, निष्काम कर दिया है.
रोटी व दाल को भी , तरसे हैं, अम्मा घर में,
इस बेरुख़ी ने तुमको, बदनाम कर दिया है.
मँहगाई ऐसी आयी, रोये हैं लोग-लुगाई,
अब मूम की फली को, बादाम कर दिया है.
हम नोट बंदी से ही, पहले ही मर चुके थे,
जीएसटी ने सबको,गुमनाम कर दिया है.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.20-09-2017 गुजरात.
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