ग़ज़ल
देख ऐसे न तू बना मुझको .
अपने सीने से तू लगा मुझको.
प्यास ऐसी कि क्या कहें तुझसे,
स्वर्ण-कलशों से तू पिला मुझको.
सर्द रातें ये जान लेवा हैं,
आंच से अपनी आ जला मुझको.
रात बस ऐक दे ख़ता करने ,
उम्रभर चाहे फिर रुला मुझको.
बंद आँखों का ये हसीन सफ़र,
याद आयेगा हर जगह मुझको
तुझसे मिलने की आर्ज़ू अब तो,
कर रही देख बावरा मुझको .
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.08-12-07 समय-12-46PM
देख ऐसे न तू बना मुझको .
अपने सीने से तू लगा मुझको.
प्यास ऐसी कि क्या कहें तुझसे,
स्वर्ण-कलशों से तू पिला मुझको.
सर्द रातें ये जान लेवा हैं,
आंच से अपनी आ जला मुझको.
रात बस ऐक दे ख़ता करने ,
उम्रभर चाहे फिर रुला मुझको.
बंद आँखों का ये हसीन सफ़र,
याद आयेगा हर जगह मुझको
तुझसे मिलने की आर्ज़ू अब तो,
कर रही देख बावरा मुझको .
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.08-12-07 समय-12-46PM
वाह! जितनी सुंदर गजल उतनी सुंदर तस्वीरें.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर/देखकर.
आप बहुत कम लिखतें है कृपया कुछ ज्यादा लिखें.
रात बस ऐक दे ख़ता करने ,
जवाब देंहटाएंउम्रभर चाहे फिर रुला मुझको.
"कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को पता न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बात सहर न हो"
ये मशहूर शेर जेहन में आया आप की ग़ज़ल पढ़ के जिसे मोहम्मद हुसैन अहमद हुसैन ने गया है. भाई कमाल का लिखते हैं आप.बधाई.
नीरज
रात बस ऐक दे ख़ता करने ,
जवाब देंहटाएंउम्रभर चाहे फिर रुला मुझको.
"कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को पता न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बात सहर न हो"
ये मशहूर शेर जेहन में आया आप की ग़ज़ल पढ़ के जिसे मोहम्मद हुसैन अहमद हुसैन ने गया है. भाई कमाल का लिखते हैं आप.बधाई.
नीरज
खींचली दुश्मनों ने तलवारें ,
जवाब देंहटाएंवो महज ख़्वाब में ही आया था.
आप की ग़ज़ल के इस शेर पर टिपण्णी के लिए मुझे कोई लिंक नहीं मिला इसलिए यहाँ कह रहा हूँ की "वल्लाह क्या बात है.बेहतरीन, बेमिसाल शेर है ये.वाह वाह वाह !!!!!
नीरज