
उल्टे सीधे ख़याल करती हैं .
मेरी सखियाँ बवाल करती हैं.
मेरे गालों पे सुर्खियाँ क्यों हैं,
मुझसे अक्सर सवाल करती हैं.
तेरी सूरत मेरी निगाहों में ,
देख कर के कमाल करती हैं.
उनकी किस्मत में तू नहीं शायद,
सोच दिल में मलाल करती हैं.
बच के रहना तू अब जरा उनसे,
आँखों आँखों हलाल करती हैं.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.10-12-07 समय-9-40PM
सुभाष जी
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ आप ने तो कमाल ही कर दिया है. खूबसूरत ग़ज़ल और साथ में खूबसूरत बालाएं भाई वाह वाह !!! प्रभु आप ने मेरे ब्लॉग की और रुख करना ही छोड़ दिया है आख़िर ऐसी भी बेरुखी किसलिए भाई? आप के आने से कुछ सीखने को मिलता था हमें इसलिए ही इल्तेज़ा कर रहे हैं. अपना दोस्त ही समझिए हमें रकीब नहीं.
नीरज