ग़ज़ल
ख़ुद से झरती मैं पत्तियाँ देखूँ .
तेज सपने में आँधियाँ देखूँ .
कौन पिटरौल फिर से बाँटे हैं ?
हर जगह जलती बस्तियाँ देखूँ.
अपने माँ बाप कर दिये ख़ारिज,
कोर्ट में दर्ज अर्ज़ियाँ देखूँ .
जिनको ज़िन्दा जला दिया तुमने,
बेबसों की मैं सिसकियाँ देखूँ .
क़त्ल होते मैं देखूँ गलियों में ,
बंद होती मैं खिड़कियाँ देखूँ .
कौन गालों के आँसू पोंछे है,
किसकी बालों में उँगलियाँ देखूँ .
जब से बिछड़ी वो फिर मिली ही नहीं,
अपने ख़्वाबों में राखियाँ देखूँ .
बूढ़े माँ बाप के गले लगकर ,
एक दुल्हन की हिचकियाँ देखूँ .
अब तो दुश्मन मुझे बचाये हैं ,
हाथ यारों के आरियाँ देखूँ .
दूसरों की सुभाष क्या जाने,
अब तो अपनी ही ग़लतियाँ देखूँ .
डॉ.सुभाष भदौरिया 14-१२-07 समय- 10-12 AM
ख़ुद से झरती मैं पत्तियाँ देखूँ .
तेज सपने में आँधियाँ देखूँ .
कौन पिटरौल फिर से बाँटे हैं ?
हर जगह जलती बस्तियाँ देखूँ.
अपने माँ बाप कर दिये ख़ारिज,
कोर्ट में दर्ज अर्ज़ियाँ देखूँ .
जिनको ज़िन्दा जला दिया तुमने,
बेबसों की मैं सिसकियाँ देखूँ .
क़त्ल होते मैं देखूँ गलियों में ,
बंद होती मैं खिड़कियाँ देखूँ .
कौन गालों के आँसू पोंछे है,
किसकी बालों में उँगलियाँ देखूँ .
जब से बिछड़ी वो फिर मिली ही नहीं,
अपने ख़्वाबों में राखियाँ देखूँ .
बूढ़े माँ बाप के गले लगकर ,
एक दुल्हन की हिचकियाँ देखूँ .
अब तो दुश्मन मुझे बचाये हैं ,
हाथ यारों के आरियाँ देखूँ .
दूसरों की सुभाष क्या जाने,
अब तो अपनी ही ग़लतियाँ देखूँ .
डॉ.सुभाष भदौरिया 14-१२-07 समय- 10-12 AM
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