ग़ज़ल
हम को मरवाते हरामी साले।
हैं अमीरों के ये हामी साले .
बैठे साहिल पे तमाशा देखें,
कितने बुज़दिल हैं ये नामी साले.
इज़्ज़तें लुट रहीं हैं सड़कों पर.
देते गुंडों को सलामी साले .
हमको आपस में लड़ाकर हरदम,
कर रहे देखो इमामी साले.
सच को सूली पे चढ़ा देते हैं,
झूट की करते गुलामी साले.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.15-12-07 समय-5-38AM
हम को मरवाते हरामी साले।
हैं अमीरों के ये हामी साले .
बैठे साहिल पे तमाशा देखें,
कितने बुज़दिल हैं ये नामी साले.
इज़्ज़तें लुट रहीं हैं सड़कों पर.
देते गुंडों को सलामी साले .
हमको आपस में लड़ाकर हरदम,
कर रहे देखो इमामी साले.
सच को सूली पे चढ़ा देते हैं,
झूट की करते गुलामी साले.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.15-12-07 समय-5-38AM
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