ग़ज़ल
ज़ख़्म अपने कभी भरते ही नहीं.
चूतिए लोग समझते ही नहीं .
हमको देते हैं नसीहत अक्सर,
और ख़ुद हैं कि सुधरते ही नहीं.
तुमने पहले से सँभाला होता,
बाग़ी बच्चे ये बिगड़ते ही नहीं.
बैठे शाखों पे हैं सहमें-सहमें,
अब तो पंछी ये चहकते ही नहीं.
जिस्म जिस्मों से मिला करते हैं,
आजकल दिल ये धड़कते ही नहीं.
तूने छोड़ा है शहर को जब से,
तेरी गलियों से गुज़रते ही नहीं.
भाड़ में जायें बदरियाँ सारी ,
अब तो दीवाने तरसते ही नहीं.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.12-12-07 समय-9-8AM
ज़ख़्म अपने कभी भरते ही नहीं.
चूतिए लोग समझते ही नहीं .
हमको देते हैं नसीहत अक्सर,
और ख़ुद हैं कि सुधरते ही नहीं.
तुमने पहले से सँभाला होता,
बाग़ी बच्चे ये बिगड़ते ही नहीं.
बैठे शाखों पे हैं सहमें-सहमें,
अब तो पंछी ये चहकते ही नहीं.
जिस्म जिस्मों से मिला करते हैं,
आजकल दिल ये धड़कते ही नहीं.
तूने छोड़ा है शहर को जब से,
तेरी गलियों से गुज़रते ही नहीं.
भाड़ में जायें बदरियाँ सारी ,
अब तो दीवाने तरसते ही नहीं.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.12-12-07 समय-9-8AM
जय हो स्वामी सुभाष जी.....भगवान आपको जिंदा और सलामत रखें...इस उम्र में ये आग....आपके लिखे का कायल हूं मैं....साफ साफ कहने का माद्दा कहां रह गया है लोगों में...
जवाब देंहटाएंयशवंत
आपने सही कहा है डॉक्टर साहब. कुछ लोग होते है जो नही समझते है या नही समझना चाहते है किसी सीमा को किसी अनुशासन को किसी भद्रता को.
जवाब देंहटाएंयशवंतजी आप पापी को जीने की बददुआयें क्यों देते हैं.
जवाब देंहटाएंफिर अवतारी पुरुष कहाँ रहेंगे.धर्म भद्रता अनुशासन के संरक्षको के बिना प्रथ्वी रसातल को चली जायेगी.
अभी आसाम में एक एन.सी.सी. केम्प में 20 दिन आसाम के लीडो से अरुणाचल की बार्डर मियाऊँ तक जाकर सही सलामत वापिस आगया.सबको आश्चर्य हुआ और मुझे भी.
पर लगता है कि हमारी लोगों को ज़रूरत है हम उनके किसी काम तो आ रहे हैं.
सर्वेश्वर की कविता की पंक्तियाँ हैं
व्यंग्य मत बोलो
अँधों का साथ हो जाये
तो उनकी तरह रास्ता टटोलो.
पर हम तन्हा ही रहना चाहते हैं अपने रास्ते पर. अंधे ही नहीं समझना चाहते हम तो सब समझते हैं.
आप आँखों वाले हैं आपकी और मेरी तकलीफ़ एक सी है.अंत में
किसी ग़ज़ल की पंक्तियाँ याद आ रही हैं.
हँस के बोला करो बुलाया करो.
आपका घर है आया जाया करो.
अर्ज किया है.....
जवाब देंहटाएंऐसा भी कोई चूतिया देखा है आपने
कपड़ा जलाके अपना लगा आग तापने।
बोधिसत्वजी
जवाब देंहटाएंवाह वाह .भाई आप पूरी ग़ज़ल कीजिए.
क्या मतला है वज़्न भी दुरस्त भई उर्दू की मश्हूर बहर में है,
दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए.
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए. (शहरयार)
मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन
221 2121 1221 212
आगे का शेर इस तरह मैं पूरा कर दूँ-
कुर्बान जाऊँ उसकी अदाओं पे दोस्तो,
तस्वीर उसकी चिपकी है मेरे ही सामने.
sirji baat saaf hai, chutiyae sudharne ke liyae nahi paida huyae hai. aap jo chahe karle
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