ग़ज़ल
यूँ न रोकर के दिखाओ लोगो.
वाट अब इनकी लगाओ लोगो.
भेड़िये दूर तलक भागेंगे ,
आग मिलकर के जलाओ लोगो.
मांगने से न मिलेंगे हक़ अब,
छीन कर इन को बताओ लोगो.
उनके उलझाये उलझते क्यों हो ?
शक़ की दीवार गिराओ लोगो.
आइने पर न यूँ पत्थर फेंको,
मुझसे नज़रें तो मिलाओ लोगो.
वो अंधेरों के मुहाफ़िज़ सब हैं,
उनकी बातों में न आओ लोगो.
सच को कहने की ख़ता की मैंने,
मुझको सूली पे चढ़ाओ लोगो .
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.21-12-07 समय-12-35PM
यूँ न रोकर के दिखाओ लोगो.
वाट अब इनकी लगाओ लोगो.
भेड़िये दूर तलक भागेंगे ,
आग मिलकर के जलाओ लोगो.
मांगने से न मिलेंगे हक़ अब,
छीन कर इन को बताओ लोगो.
उनके उलझाये उलझते क्यों हो ?
शक़ की दीवार गिराओ लोगो.
आइने पर न यूँ पत्थर फेंको,
मुझसे नज़रें तो मिलाओ लोगो.
वो अंधेरों के मुहाफ़िज़ सब हैं,
उनकी बातों में न आओ लोगो.
सच को कहने की ख़ता की मैंने,
मुझको सूली पे चढ़ाओ लोगो .
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.21-12-07 समय-12-35PM
"सच को कहने की ख़ता की मैंने,
जवाब देंहटाएंमुझको सूली पे चढ़ाओ लोगो ."
कड़वी सच्चाई है जनाब आपकी गजल मे.
एक रास्ता भी नज़र आता है.
बधाई है.