शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007

वाट अब इनकी लगाओ लोगो.

ग़ज़ल

यूँ न रोकर के दिखाओ लोगो.
वाट अब इनकी लगाओ लोगो.

भेड़िये दूर तलक भागेंगे ,
आग मिलकर के जलाओ लोगो.

मांगने से न मिलेंगे हक़ अब,
छीन कर इन को बताओ लोगो.

उनके उलझाये उलझते क्यों हो ?
शक़ की दीवार गिराओ लोगो.

आइने पर न यूँ पत्थर फेंको,
मुझसे नज़रें तो मिलाओ लोगो.

वो अंधेरों के मुहाफ़िज़ सब हैं,
उनकी बातों में न आओ लोगो.

सच को कहने की ख़ता की मैंने,
मुझको सूली पे चढ़ाओ लोगो .

डॉ.सुभाष भदौरिया ता.21-12-07 समय-12-35PM






1 टिप्पणी:

  1. "सच को कहने की ख़ता की मैंने,
    मुझको सूली पे चढ़ाओ लोगो ."

    कड़वी सच्चाई है जनाब आपकी गजल मे.
    एक रास्ता भी नज़र आता है.
    बधाई है.

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