ग़ज़ल
बात मानेंगे कहाँ बातों में ?
जिनको आता है मज़ा लातों में.
जान अब आ गई है होंठों पे ,
रोज़ की उसकी खुराफातों में.
दिन भी पहले से कहाँ हैं यारो,
वो मज़ा अब है कहाँ रातों में.
तुझको मिलना,फिर इक दिन मिलले,
तंग मत कर यूँ मुलाकातों में.
जिस्म जिस्मों पे रहे हैं हावी,
कुछ मिला ही नहीं जज़्बातों में.
बदलियाँ समंदर पे जा बरसी,
हम तरसते रहे बरसातों में.
ता.08-01-08 समय-09-45AM
जिनको आता है मज़ा लातों में.
जान अब आ गई है होंठों पे ,
रोज़ की उसकी खुराफातों में.
दिन भी पहले से कहाँ हैं यारो,
वो मज़ा अब है कहाँ रातों में.
तुझको मिलना,फिर इक दिन मिलले,
तंग मत कर यूँ मुलाकातों में.
जिस्म जिस्मों पे रहे हैं हावी,
कुछ मिला ही नहीं जज़्बातों में.
बदलियाँ समंदर पे जा बरसी,
हम तरसते रहे बरसातों में.
ता.08-01-08 समय-09-45AM
तरसें नहीं, उमड़-घुमड़ की तरफ भी कभी न कभी होगी ही...
जवाब देंहटाएंअच्छी लिखी है।
जिस्म जिस्मों पे रहे हैं हावी,
जवाब देंहटाएंकुछ मिला ही नहीं जज़्बातों में.
Waah... Kya sach men?
Hamesha ki tarah..wallah kya baat hai... vali ghazal.
Neeraj