मंगलवार, 15 जनवरी 2008

मिलके मछली को फाँसते देखो.

ग़ज़ल
अपने अपनों को बाँटते देखो.
एक दूजे की चाटते देखो.

हंस और बगुले जाल डाले हैं,
मिलके मछली को फाँसते देखो.

कुत्ता रोया है हिचकियाँ लेकर,
एक हड्डी के वास्ते देखो.

चील कौवों को भी मिली जूठन,
रह गये लोग ताकते देखो .

भेड़िए आ गये हैं बस्ती में,
भोली भेड़ों को काँपते देखो.

आग मिलकर जलाओ लोगो अब,
रहनुमा के ना रास्ते देखो.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.15-08-08 समय-09-30AM













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