ग़ज़ल
अबकी तन्हाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
दिल की अंगड़ाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
देखने में तो साथ साथ मगर,
बीच में खाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
बेटियों के ही बाप जाने हैं,
बजती शहनाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
पंक्षीओं की जुबां पे ताले हैं,
अब तो अमराइयाँ ग़ज़ब की हैं.
तुम भी डूबो तो जान जाओगे,
ग़म की गहराइयाँ ग़ज़ब की है.
ज़िक्र होता है उनकी महफ़िल में,
अपनी रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
हाथ रखती हैं रात में सर पर,
माँ की परछाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.28-01-08 समय-07-25PM
अबकी तन्हाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
दिल की अंगड़ाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
देखने में तो साथ साथ मगर,
बीच में खाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
बेटियों के ही बाप जाने हैं,
बजती शहनाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
पंक्षीओं की जुबां पे ताले हैं,
अब तो अमराइयाँ ग़ज़ब की हैं.
तुम भी डूबो तो जान जाओगे,
ग़म की गहराइयाँ ग़ज़ब की है.
ज़िक्र होता है उनकी महफ़िल में,
अपनी रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
हाथ रखती हैं रात में सर पर,
माँ की परछाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
डॉ.सुभाष भदौरिया ता.28-01-08 समय-07-25PM
कमाल किया है सुभाष भाई. क्या शेर कहे हैं.
जवाब देंहटाएं"ग़म ही बख्शेगा है इश्क है आख़िर
मगर रानाईयाँ गज़ब की हैं ......"
शुक्रिया आप का
पूरी रचना अच्छी है, लेकिन दो लाइनें गजब की हैं-
जवाब देंहटाएंबेटियों के ही बाप जाने हैं,
बजती शहनाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
हाथ रखती हैं रात में सर पर,
जवाब देंहटाएंमाँ की परछाइयाँ ग़ज़ब की हैं.
bahut khoob
bahut khoob!
जवाब देंहटाएंbahut badiya likha hai!
बेहतरीन है !
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