ग़ज़ल
दिन दहाड़े वो डाका डालेगा .
बाद में मुझको वो संभालेगा .
लाख बचने की मैं करूँ कोशिश.
बातों बातों में वो मना लेगा .
पहले बाहों में आसरा देगा,
बाद में गेंद सा उछालेगा .
मेरे सीने पे अपना सर रखकर,
बालकों से वो शौक पालेगा .
है मचलना तो मेरी फितरत में,
हाथ क्या दिल भी वो जला लेगा.
मुझ से बिगड़ी तो कोई बात नहीं,
वो किसी और से बना लेगा .
है गुनाहों का देवता मेरा ,
अपने ख्वाबों मे वो बुला लेगा.
डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद,
दिन दहाड़े वो डाका डालेगा .
बाद में मुझको वो संभालेगा .
लाख बचने की मैं करूँ कोशिश.
बातों बातों में वो मना लेगा .
पहले बाहों में आसरा देगा,
बाद में गेंद सा उछालेगा .
मेरे सीने पे अपना सर रखकर,
बालकों से वो शौक पालेगा .
है मचलना तो मेरी फितरत में,
हाथ क्या दिल भी वो जला लेगा.
मुझ से बिगड़ी तो कोई बात नहीं,
वो किसी और से बना लेगा .
है गुनाहों का देवता मेरा ,
अपने ख्वाबों मे वो बुला लेगा.
डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद,
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