शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

दिन दहाड़े वो डाका डालेगा.




ग़ज़ल
दिन दहाड़े वो डाका डालेगा .
बाद में मुझको वो संभालेगा .

लाख बचने की मैं करूँ कोशिश.
बातों बातों में वो मना लेगा .

पहले बाहों में आसरा देगा,
बाद में गेंद सा उछालेगा .

मेरे सीने पे अपना सर रखकर,
बालकों से वो शौक पालेगा .

है मचलना तो मेरी फितरत में,
हाथ क्या दिल भी वो जला लेगा.

मुझ से बिगड़ी तो कोई बात नहीं,
वो किसी और से बना लेगा .

है गुनाहों का देवता मेरा ,
अपने ख्वाबों मे वो बुला लेगा.

डॉ. सुभाष भदौरिया अहमदाबाद,



2 टिप्‍पणियां: